बदलती हुई अदायें
ाबदलती हुई अदायें, मुझको दिखा रही थी।
नखरेवाली शर्मीली अपनी, आंखों के कोरों से,
मुझपर निश्छल प्रेमसुधा, बरसा रही थी।
यौवन की मदिरा पिये, नशीली आंखों से,
मेरे दिल में अजीब सी, हलचल मचा रही थी।
इश्क़ की मंजिल तक, पहुँचने के वास्ते,
नजरें झुकी-झुकी रखकर, पलकें उठा रही थी।
छलकती बाढ़ सी सौन्दर्य, मुग्ध राग लिए ,
शर्म की आड़ तले ,मन्द -मन्द मुस्कुरा रही थी।
नवीन गुलाब जैसे गाल, अधखुली जुबानो से,
मेरे दिल में अजीब सी, धड़कन बढा रही थी।
____________रमेश कुमार सिंह /२५-०२-२०१६