आनंदवर्धक गीतिका- आधार छंद
मापनी 2122 2122 212
हाल ए गम में दिवाना आ गया
उफ़ यहाँ तो मय खजाना आ गया
साफ़ कर दूँ क्या हिला कर बोतलें
शाम आई तो जमाना आ गया।।
देखिये यह तो न पूछें जानकर
दाग दीवारें दिखाना आ गया।।
उलझनों में बीत जाती जिंदगी
आप कहते हैं बहाना आ गया।।
दोपहर यह ताक पर है साहबा
सुबह किसका अब सुहाना आ गया।।
किरण आती जा रही है छानकर
रात को भी अब जगाना आ गया।।
गौतम न पूछो हजम का हाजमा
अब मुझे भी लत लगाना आ गया।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी