ईमान पर न टंगती, आज देश की नीति
बे-ईमानी हो गई, हर पार्टी की नीति |1|
भूल हुई है आम से, जनता अब पछताय
बाहर पहुंच दाल है, भात नमक से खाय |२|
टूट गई सब बायदे, समय हुआ प्रतिकूल
हारकर फिर चुनाव में, वो समझेगा भूल |३|
शुभदिन अब कब आयगा, हुए भले दिन दूर
महँगाई को झेलने, जनता है मजबूर |४|
देखा समतावाद को, है स्वांग अर्थ हीन
धनियों का है मंडली, है दूर दीन हीन |५|