दोहे : खुश हो रहे किसान
बादल नभ में छा गये, पुरवा बहे बयार।
आमों का मौसम गया, सेबों की भरमार।।
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फसल धान की खेत में, लहर-लहर लहराय।
अपने मन के छन्द को, रचते हैं कविराय।।
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हरी-हरी उग आयी है, चरागाह में घास।
धरती से आने लगी, सोंधी-तरल सुवास।।
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देख-देख कर फसल को, खुश हो रहे किसान।
करते सावन मास में, भोले का गुणगान।।
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काँवड़ लेने चल पड़े, नर-नारी हरद्वार।
आशुतोष के धाम में, उमड़ी भीड़ अपार।।
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मिलता है भगवान के, मन्दिर में सन्तोष।
हर-हर, बम-बम नाद का, गूँज रहा उद्घोष।।
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होता है अन्तःकरण, जब मानव का शुद्ध।
दर्शन देते हैं तभी, जगन्नाथ अनिरुद्ध।।
— डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’