अपने आप से
नदियाँ करती कलरव,
पंक्षी का गुंजार रहा।।
नीली चादर से देखो,
ढ़का सारा आसमान रहा।।
पीली सरसों की फूलों से,
पीला यह भू भाग रहा।।
फिर भी सूरज संग लिये तपन,
जग में उसका प्रसार रहा।।
शीतलता शशि की देखो,
अब भि बरकरार रहा।।
इस मनोहारी मौसम में,
मैं बैढा क्यों उदास रहा।।