कविता : ‘सुर्ख गुलाब’
हवाओं में ,
बिखरी है एक खास महक
जैसे बिखेर दिया हो कोई अनगिनत
सुर्ख गुलाब ……….!
रेत के घरौंदों से,
उठने लगी है सोंधी खुशबू
जो तुम्हारे होने की गवाही देती है
चहुँओर फैली है एक मादक गंध जो
प्रेम की सबसे प्रगाढ़ स्वरुप की व्याख्या करती है
शब्दकोश के चुनिन्दा शब्दों को चुनकर
गुंथा है एक माला…
जो तुम्हारे और मेरे बीच की कहानी से मेल खाती है
क्या यह संभव है कि…
कभी जब मैं न रहूँ इस दुनियां के समक्ष
साक्षी बनोगे मेरे प्रेम और निश्छल भावनाओं की …..?
— संगीता सिंह ‘भावना’