कविता

परिंदा आवारा

ये  दरख़्त , येे चौखट , ये गलियां,
कुछ भी ना भूला  ये परिंदा आवारा !!

वक्त की धूल ने चेहरे बदल डाले ,
पर सीरत ना भूला  ये परिंदा आवारा !!

मन की भाषा गूँगी, अक्षर बिन फेरों के
अनपढ़ सी अनुभूति ना भूला ये परिंदा आवारा !!

बूँद बूँद आँशु यत्न से सहेजा था
पथरीला मुखोटा था , मोम का जिगर था
फिर भी न भुला ये परिंदा आवारा !!

डॉली अग्रवाल

पता - गुड़गांव ईमेल - dollyaggarwal76@gmail. com

One thought on “परिंदा आवारा

  • महेश कुमार माटा

    वाह बहुत खूब।

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