ग़ज़ल
सूखे हुऐ ताल से बातें पानी की
उनको भी जिद है शायद मनमानी की
अमन चैन की बात वतन में खुशहाली
आई हमको याद कहानी नानी की
पल में निकली धूप हुई पल में बरखा
मुझे लगा फिर मौसम ने नादानी की
लगी नहीं बारात तलक दरवाजे पर
कहते हैँ हमने बढ़ कर अगवानी की
रह जाये ताउम्र हमारी बस्ती में
उनको चाहत है ऎसे सैलानी की
बाद हमारे हमको दुनिया याद रखे
ऐसी कोशिश सबने ही लासानी की