कविता

कान खोलकर सुन लो आतंक

कान खोल कर सुन लो आतंक
आ गया है अब तेरा अंत
यदि भारती मॉ पर नजर डाला
तो हो जायेगा तेरा काम तमाम

बहुत किये हो तुम गद्दारी
अब संभल जाओ ये है चेतावनी
फिर यदि कीये कोई गुस्ताखी
तो बच नही पायेगा तेरा खानदानी

क्या मिलता है तुम्हे खुन खराबा से
क्यो नही समझते हो तुम बातो से
तुम्हे कोई समझाने वाला नही
या फिर तुम बातो के देवता नही

भारत की सेना भी अब तैयार है
तेरा काम तमाम करने को बेचैन है
जितना छुपना था छुप लिये
अब घर घर से निकाल कर तुम्हे मारना है|
    निवेदिता चतुर्वेदी

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४