गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल : शुबहात दिल में अपने सदा पालता रहा

शुबहात दिल में अपने सदा पालता रहा ।
शायद इसी के चलते मुझे टालता रहा ।।

ना रास्ता मिला न उसे मंज़िलें मिली ।
वो ख़ाक दरबदर की सदा छानता रहा ।।

मैं पा सका न इंसाँ खुदा की तलाश में ।
बस ख़ाक दर बदर की मैं छानता रहा ।।

फ़ुरसत न मिल ही पाई किसी दिन किसी घडी ।
हर सांस से मेरी उससे यूँ वास्ता रहा ।।

गैरों के साथ रुसवाँ अपनों से भी हुए ।
हर बात यूँ ज़माने में उछालता रहा ।।

सब ख़्वाब गुम थे जैसे किसी गहरे कुएं ।
आँखों की रस्सियों से उन्हें खींचता रहा ।।

हिस्से की मेरी खुशियाँ उसी को मिला करे ।
ताउम्र हर दुआ में ये ही मांगता रहा ।।

महेश कुमार कुलदीप ‘माही’

महेश कुमार कुलदीप

स्नातकोत्तर शिक्षक-हिन्दी केन्द्रीय विद्यालय क्रमांक-3, ओ.एन.जी.सी., सूरत (गुजरात)-394518 निवासी-- अमरसर, जिला-जयपुर, राजस्थान-303601 फोन नंबर-8511037804