ग़ज़ल
जिंदगी क्या है ज़रा नज़रे उठा कर देखो
अश्क बारी बंद कर चश्में सुखा कर देखो |
जिंदगी भर लालसा के पीछे भागे तुम क्यूँ
शांति से तुम सोचकर कारण पता कर देखो |
मुफलिसी को तुम भी हंसी में चिढ़ाया होगा
मुफलिसों को कुछ कभी तो तुम खिला कर देखो |
चश्मा पहने हो जो उसको साफ़ करना होगा
शान शौकत धन के ऐनक को हटा कर देखो |
मानुषिकता में नहीं कोई बड़ा या छोटा
द्वेष हिंसा बैर भावों को कभी दिल से मिटा कर देखो
कालीपद “प्रसाद”