स्वास्थ्य

आधुनिकता की भागमदौड़ में हृदयाघात का बढ़ता खतरा

वर्तमान आधुनिक युग ने समाज के संस्कारों और जीवननियमों को कुछ इस तरह परिवर्तित कर दिया है कि आधुनिकता की अँधी दौड़ में मनुष्य सही कह सकने लायक कुछ भी नहीं कर पा रहा है। आजकल यह सुनने में आना कि पड़ोस के किसी 40-45 साल के व्यक्ति को अचानक हृदयाघात हो गया है, फलाँ व्यक्ति में तीन-चार ब्लाकेज पाए गए या फलाँ व्यक्ति की ओपन हार्ट सर्जरी हुई है या एन्जियोप्लास्टी या एन्जियोग्राफी हुई, एक आम सा समाचार होता जा रहा है। हृदय से संबंधित ये सारे चिकित्सकीय शब्द आम जनता में कितने घुले मिले परिचित से हो गए हैं। एक शोधसर्वेक्षण के अनुसार सन् 2004 से 2013 के बीच 15 से 29 आयु वर्ग के युवाओं की मौत का सबसे बड़ा कारण हृदय संबंधी बीमारियां पाई गई हैं।

आज का युवा अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखे बिना लगातार सफलताओं के पाने के जुनून में लगा हुआ है। अचानक इतनी आपाधापी के बीच में घर के सदस्यों को चौंकाने वाला समाचार मिलता है कि बेटे को ऑफिस में अटैक आ गया। वास्तव में यह हार्टअटैक या हृदयाघात या चिकित्सकीय भाषा में कहें तो मायोकार्डियल इन्फार्क्शन या कोरोनरी थ्रोम्बोसिस है क्याॽ जब हृदय की कोई धमनी रक्त के किसी छोटे या बड़े थक्के के कारण अचानक ब्लॉक हो जाती है, जिससे रक्त प्रवाह अवरुद्ध हो जाता है और रक्त न पहुँचने से हृदय की मांसपेशियों में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। ऐसी विकट स्थिति में यदि शीघ्र ही रक्त प्रवाह सुचारु नहीं किया जाता, तो हृदय की मांसपेशियों की गति रूक जाती है। अधिकांश हृदयाघातों के मामलों में इन रक्त थक्कों के फट जाने से भी व्यक्ति की अचानक मृत्यु हो जाती है। हृदय की धड़कन की इस असामान्य स्थिति को हृदयाघात कहते हैं।

सामान्यतौर पर हृदयाघात  के कारणों में सबसे प्रमुख कारण व्यक्ति के रक्त में कोलेस्टेरोल का असामान्य रुप से अधिक होना माना जाता है, जिसे हायपरकोलेस्टेरोल्मिया भी कहते हैं। हालाँकि सभी कोलेस्टेरोल इसके लिए घातक नहीं होते, बल्कि एचडीएल(हाइ-डेंसिटी लिपोप्रोटीन) एक ऐसा कोलेस्टेरोल भी है जो यदि सामान्य से कम हो जाए तो भी हृदयाघात  हो सकता है। इसके अलावा उच्च रक्तचाप (हायपरटेंशन), मधुमेह और आनुवांशिकता तथा साथ ही धूम्रपान और मोटापा हृदयाघात के लिए उत्तरदायी होते हैं।

आधुनिकता की इस भागमदौड़ भरी जिंदगी में बहुत जरुरी हो गया है कि लोग स्वयं के लिए भी थोड़ा समय दें। समय समय पर अपने कोलेस्ट्रोल स्तर को 130 एमजी/ डीएल तक बनाए रखने का प्रयास करते रहें। इसके लिए ज्यादातर तली हुई चीजों का सेवन न करें। कभी कभी लीवर में अतिरिक्त कोलेस्ट्रोल का निर्माण होने लगता है, तब नियमित परीक्षण करवाकर कोलेस्ट्रोल घटाने वाली दवाओं का सेवन करना पड़ सकता है। आधुनिकता ने तनावों को तो ऐसे जीवन में शामिल कर दिया है कि लोग मुक्त चित्त की परिभाषा ही मानो भूल गए हैं। आज आवश्यकता इस बात की है कि लोगों को अपने तनावों को लगभग 50 प्रतिशत तक कम करना होगा, इससे अपने आप हृदय रोग को रोकने में सहायता मिलेगी, क्योंकि मनोवैज्ञानिक तनाव हृदय की बीमारियों का मुख्य कारण होते हैं। इसके लिए जरुरी है कि लोग अपने परिवार के साथ खुशी खुशी समय बिताएं। अपनी हर अच्छी या बुरी बात को अपनों से साझा करें। सभी को अपना वजन भी सामान्य रखना चाहिए, इसके लिए अधिक से अधिक निम्न रेशे वाले अनाजों तथा उच्च किस्म के सलादों का सेवन वजन को नियंत्रित कर सकता है। नियमित रूप से आधे घंटे तक टहलना भी हृदय संबंधी रोगों से बचाव का सबसे सरल तरीका है क्योंकि सैर करने से उत्तम कोलेस्ट्रोल अर्थात् एचडीएल कोलेस्ट्रोल बढ़ता है। इसके अलावा नियमित कम से कम 15 मिनट तक ध्यान और हल्के योग व व्यायाम प्रतिदिन करने से तनाव तथा रक्त दबाव कम होते हैं। इनसे व्यक्ति सक्रिय रहने से हृदय रोग को नियंत्रित करने में सहायता भी मिलती है। मधुमेह से पीड़ित लोगों को शक्कर को नियंत्रित रखना बहुत ही अनिवार्य है।

कई बार लोगों को ज्ञात ही नहीं होता कि हृदयाघात के आमतौर पर लक्षण क्या होते हैं। लोग अपने कामों में इतने व्यस्त होते हैं कि उनको याद ही नहीं होता कि वे 40 के ऊपर हो रहे हैं और हृदयाघात सम्भवतः उनको परेशानी में डाल सकता है। अतः आधुनिकता के फैशन में बीच बीच में अपनों को भी याद दिलाते रहना चाहिए एक दूसरे को कि वे उम्रदराज हो रहे हैं, तो उनका हृदय भी बुढ़ापे की ओर बढ़ रहा है। प्रायः सामान्य लक्षणों में अचानक तेजी से  पसीना आना एवं सांस फूलना, छाती में दर्द होना एवं सीने में ऐंठन होना, हाथों, कंधों, कमर या जबड़े में दर्द होना अथवा मितली आना या उल्टी होना, इनमें से कोई भी लक्षण हृदयाघात का सूचक हो सकता है।

ऐसा कुछ भी लगने पर आनिवार्यरुप से आवश्यक है कि व्यक्ति तुरंत अविलम्ब चिकित्सकीय संरक्षण प्राप्त करे। इससे भी बढ़कर बात यह होगी कि सारी सावधानियों को जीवन में नियमित रुप से बरता जाए और खुशहाल आधुनिक सुविधा सम्पन्न जीवन जिया जाए।

 

डॉ. शुभ्रता मिश्रा

डॉ. शुभ्रता मिश्रा वर्तमान में गोवा में हिन्दी के क्षेत्र में सक्रिय लेखन कार्य कर रही हैं । उनकी पुस्तक "भारतीय अंटार्कटिक संभारतंत्र" को राजभाषा विभाग के "राजीव गाँधी ज्ञान-विज्ञान मौलिक पुस्तक लेखन पुरस्कार-2012" से सम्मानित किया गया है । उनकी पुस्तक "धारा 370 मुक्त कश्मीर यथार्थ से स्वप्न की ओर" देश के प्रतिष्ठित वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली से प्रकाशित हुई है । इसके अलावा जे एम डी पब्लिकेशन (दिल्ली) द्वारा प्रकाशक एवं संपादक राघवेन्द्र ठाकुर के संपादन में प्रकाशनाधीन महिला रचनाकारों की महत्वपूर्ण पुस्तक "भारत की प्रतिभाशाली कवयित्रियाँ" और काव्य संग्रह "प्रेम काव्य सागर" में भी डॉ. शुभ्रता की कविताओं को शामिल किया गया है । मध्यप्रदेश हिन्दी प्रचार प्रसार परिषद् और जे एम डी पब्लिकेशन (दिल्ली)द्वारा संयुक्तरुप से डॉ. शुभ्रता मिश्राके साहित्यिक योगदान के लिए उनको नारी गौरव सम्मान प्रदान किया गया है। इसी वर्ष सुभांजलि प्रकाशन द्वारा डॉ. पुनीत बिसारिया एवम् विनोद पासी हंसकमल जी के संयुक्त संपादन में प्रकाशित पूर्व राष्ट्रपति भारत रत्न कलाम साहब को श्रद्धांजलिस्वरूप देश के 101 कवियों की कविताओं से सुसज्जित कविता संग्रह "कलाम को सलाम" में भी डॉ. शुभ्रता की कविताएँ शामिल हैं । साथ ही विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में डॉ. मिश्रा के हिन्दी लेख व कविताएं प्रकाशित होती रहती हैं । डॉ शुभ्रता मिश्रा भारत के हिन्दीभाषी प्रदेश मध्यप्रदेश से हैं तथा प्रारम्भ से ही एक मेधावी शोधार्थी रहीं हैं । उन्होंने डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर से वनस्पतिशास्त्र में स्नातक (B.Sc.) व स्नातकोत्तर (M.Sc.) उपाधियाँ विश्वविद्यालय में प्रथम स्थान के साथ प्राप्त की हैं । उन्होंने विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन से वनस्पतिशास्त्र में डॉक्टरेट (Ph.D.) की उपाधि प्राप्त की है तथा पोस्ट डॉक्टोरल अनुसंधान कार्य भी किया है । वे अनेक शोधवृत्तियों एवम् पुरस्कारों से सम्मानित हैं । उन्हें उनके शोधकार्य के लिए "मध्यप्रदेश युवा वैज्ञानिक पुरस्कार" भी मिल चुका है । डॉ. मिश्रा की अँग्रेजी भाषा में वनस्पतिशास्त्र व पर्यावरणविज्ञान से संबंधित 15 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं ।