कविता

कविता : आदमी की गाथा

हर आदमी एक मजदूर है |
कोई कम तो कोई ज्यादा मजबूर है |
संघर्ष से मिलता जन्नत का नूर है |
यही प्यारे दुनिया का दस्तूर है |
सभी को अपनी खासियतों पर गरूर है |
पर सभी में कहीं न कहीं कमियां जरूर है |
अपने कार्यों को दूसरों पर थोपते देखे |
इतने शातिरों  में कुछ नेक भी देखे |
जंग जितना आसान नही प्यारे |
इसमें इंसान अपना सब कुछ वारे |
संतुष्ट शब्द कहीं खो सा गया है |
हर कोई दुखी हो सा गया है |
जीवन में सब कुछ खुदा की माया है |
उसे भी भला कोई समझ पाया है |
इतना ऊँचा भी मत उड़ो जैसे पेड़ खजूर है।
न छाया दे ,फल भी लागे अति दूर है |
सूरज की माना गर्मी जरूर है
पर बादलों के सामने झुकना उसे मंजूर है |
सुखी आदमी दिखता अब दूर है |
सबको कोई न कोई दुःख जरुर है |
अपने फर्ज को  सबसे बड़ा मानो |
अपनी मंजिल को जल्दी पहचानो |
रुकना मुर्दे की निशानी है |
चलते रहो जब तक जिंदगानी है |
होंसले रखो हमेशा बुलंद |
हंसो और बोलो  मंद मंद |
खुदा के नाम को रखो अपने संग |
फिर देखो तुम कुदरत के रंग |
चींटी चढ़ जाये जब पहाड़ |
तू भी हो जा लक्ष्य पर सवार |
तेरा भी हो जाएगा एक दिन कल्याण |
मेहनत करता जा तू अपार |
करनी का फल पाता है हर कोई |
इसमें न किसी का कोई कसूर है |
क्योंकि हर आदमी यहाँ एक मजदूर है |
कोई कम तो कोई ज्यादा मजबूर है |

कृष्ण मलिक

कृष्ण मलिक

मेरा नाम कृष्ण मलिक है । अम्बाला जिले के एक राजकीय विद्यालय में व्यवसायिक अध्यापक के रूप में कार्यरत हूँ । योग्यता में ऑटोमोबाइल इंजीनियर हूँ । कम्प्यूटर चलाने में विशेष रुचि रखता हूँ। दिल्ली, मध्य प्रदेश, लखनऊ , हरियाणा , पंजाब एवम् राजस्थान के समाचार पत्र में मेरी रचनाएँ छप चुकी है । दिल्ली की सुप्रसिद्ध पत्रिका ट्रू मीडिया में अगस्त के अंक में मेरी एक रचना प्रकाशित हो रही है । बचपन में हिंदी की अध्यापिका के ये कहने पर कि तुम भी कवि बन सकते हो , प्रेरणा पाकर रचनाओं की शुरुआत की और 14 वर्ष की उम्र से ही कुछ न कुछ तत्व को पकड़ कर लिखना जारी रखा । आज लगभग 12 वर्ष बीत गए एवम् 150 के आस पास आनंद रस एवम् जन जागृति की काव्य एवम् शायरी की रचनाएँ कर चुका हूँ।