मछली
साम हो चुकी थी अंधेरे का जाल बढ रहा था. ठन्डी हवाएं चल रहीं थी पानी टपकने की आवाज आ रही थी थोड़ी हीदेर में मूसलाधार बारिश होने लगी। परिवार के सभी लोग भोजन करके अपने अपने कक्ष में सोने की तैयारी करने लगे मैं भी कुछ पुस्तकों को टेबल पर बिखरे पड़े को समेटते हुए अपने शयन कक्ष की ओर चल पड़े और लेट गये । लेटे हुए ही अपने फेसबुक मित्रों को याद करने लगा कुछ लोगों के साथ चैटिग किया कब निद का पहरा मेरे उपर हुआ मुझे पता भी नहीं चला। और मोबाइल हाथ से छुट गया और मैं एक तरफ सो गया।
पुरा रुम प्रकाशमय था तीन बजे लगभग मेरी निद खुली और मैं थोड़ी देर बाद पुनः सोने का प्रयास करता हूँ तभी मुझे एक आवाज़ सुनाई दी खरर खरर …..मेरी नींद खुल गई और इधर उधर देखने लगा तो एक जगह प्रकृति के सुरम्य वातावरण से बिछड़कर पानी बिन मछली तड़प रही थी । मैं अवाक रह गया आखिर यह मछली आयी कहाँ से मैं उस मछली को एक टक देखता रहा उसकी तड़प मेरे सिने में चुभ रही थी मुझे लगा इस मछली को पानी की इस समय शक्त जरूरत है आखिर इसे। बचाना नहीं था तो मेरी नींद क्यों खुलीं और मैं बचाने के प्रयास में जुट गया और उस मछली को उठाकर मैं पानी में छोड़ आया । वह मछली पुनः प्रकृति के गोद में खेलने लगी।
उसका खेलना मेरे दिल को एक ऐसा सुकून दे गया कि शायद कभी मिला हो। उसी रात मुझे समझ मे आया किसी के तड़प को सामान्य स्थिति में ले जाना कितना सुखदायक होता है। किसी को आनन्द देने में जो आनंदानुभूति प्राप्त होती है शायद और कहीं नहीं।
— रमेश कुमार सिंह/08-06-216
कर्मनाशा कैमूर बिहार