गजल/गीतिका
मात्रा भार – 24, 12-12 पर यति………..
देखों भी नजर उनकी, कहीं और लड़ी है
सहरा सजाया जिसने, बहुत दूर खड़ी है
गफलत की बात होती, तो मान भी लेते
लग हाथ मेरी मेंहदी, कहीं और चढ़ी है॥
ये रश्म ये रिवाजें, ये शोहरती बाजे
है नाम का ये मंडप, सौतन जो खड़ी है॥
परदा उठा है देखों, यहाँ झूमते हैं सारे
घायल है पाँव घुंघुरू, नौ-टंकी बड़ी है॥
पकवान स्वाद मीठा, सम्मान की कड़ाही
आतीश की ये बाजी, मद-माती घड़ी है॥
सिंदूर में है ताकत, मांग मेरा मंदिर
आस मेरा कोहबर, अब सुहागन अड़ी है॥
अग्नि की है साक्षी, संग सात-सात फेरे
मंत्रों की वरमाला, गले मेरे जड़ी है॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
बढ़िया !
सादर धन्यवाद आदरणीय