तडप रहा है मन
मेरा
तडप रहा है
तन में लगी है आग
सूनी है फूलवारी
सूना है मन का बाग।
रोज मुंडेरे पे आकर
संदेश सुनाता काग
चहक चहक कर घर सजाती
दुख को करती त्याग।
आश्विन बीता, फागुन बीता
पायी न मैं चैन
राहें देख रही कब से
मेरे छलक रहे हैं नयन।
आ न सावन में
दे जा न सौगातें
करनी है मुझको पिया
बहुत प्यार की बातें।।
बहुत खूब !