कविता : यह कैसा है दर्द
मर जायेगा वो इन्सान,
अपने मानसिक तनाव से,
कुन्ठित हो जायेगा वह इन्सान,
इस जगह पर,
सिकुड़ जायेगी,
मानसिक मांसपेशियां,
फट जायेगी नसे,
छटपटाने की,
मोहलत भी नहीं मिलेगी,
छोड़ जायेगा अपने,
अनमोल जीवन को।
सिर्फ बचा रह जायेगा,
उसका अवशेष,
जो धिरे-धिरे,
इस संसार में विलुप्त
हो जायेगा।
रमेश कुमार सिंह
बढ़िया कविता ! कृपया मुक्तकों को अलग से लगायें.
आभार आदरणीय!!! जी!!!