कविता – सैनिक
तुमने माँ का कर्ज चुकाया,
हो तुम माँ के सच्चे लाल।
सीमा पर दिखाई हिम्मत,
परिवार का है नहीं मलाल
ओड़ कर बर्फ़ की चादर
माँ की रक्षा में रहते तत्पर।
बहाते खूँ का कतरा कतरा ,
कदम नहीं हटते पीछे कभी।
है तुमसे ही देश की रौनक
तुम हो देश के सच्चे सैनिक।
तुम रक्षा में जागे रहते ,
देश चैन से सोता रहता।
क्या होली क्या ईद ?
क्या दिवाली क्या दशहरा ?
परवाह नहीं तुमको इसकी,
हो तुम देश के सच्चे वीर ।
होली तुम खून की खेलते
हो तुम सच्चे देश भक्त ।
जय बोलते भारत माँ की,
नहीं किसी को इसमें शक।
हो तुम माँ के सच्चे सपूत,
करता है देश तुम पर गर्व।
हथेली पर जान लिए घूमते,
कर्तव्यों से कभी न डिगते।
रणभूमि के सच्चे दूत,
भूख प्यास की नहीं परवाह।
मीलों पैदल चलकर भी,
रहती दुश्मन पर निगाह।
हिमालय से अडिग रहते,
कभी नहीं तुम थकते हो।
अदभुत साहस अदम्य उत्साह,
की प्रतिमूर्ति लगते हो।
प्रहरी बन तुम खड़े रहते,
ध्येय मार्ग पर चलकर वीर।
सिर्फ मंजिल को निहारते,
कफन बाँध कर सिर पर धीर ।
कष्ट कंटकों की राह पर,
चल दिए तुम कमर कसे ।
विशाल पर्वतों को लांघते ,
शेर समान दहाड़ते।
है तुम्हारे साहस पर निर्भर,
मुक्ति सुधा का रस निर्झर।
लक्ष्य की बलवेदी पर,
अपना तन मन वारते।
तेजपुंज सम तमस चीरते,
आँधियों में लौ जलाते ।
वसुधा का कल्याण करते ,
संघर्षों को गले लगाते।
समस्याओं को सुलझाते,
मौत का आलिंगन करते।
है तुमको शत शत नमन,
तुम को है शत शत नमन… ।
— निशा गुप्ता