जब होती थी मैं उदास तब ये लगाती थी मुझे गले आज इसको गले लगाकर जीवन का आनंद पा लिया। अब तो सुबह भी इससे और रात भी इससे होती है अब इसके बिना कहां जिंदगी बसर होती है। इसके ओझल होते ही मन उदास हो जाता है भूत-भविष्य में उलझकर वर्तमान खो जाता है। […]
Author: *डॉ. निशा नंदिनी भारतीय
अमलतास
पीले सुनहरे फूलों के गजरे तुम लटकाए हो, कहो अमलतास तुम किससे मिलने आए हो। धरती तपती लोहे सी गर्म हवाएं चलती हैं, खिलखिला कर हंसते हुए तुम सूरज से होड़ लगाते हो। डाल-डाल पर झूला झूले तुम इतराते मंडराते हो, खग को देखकर आश्रय मंद-मंद मुस्काते हो। धरती को किए पण समर्पित लेश मात्र […]
कफन तिरंगा दे जाओ
चाह नहीं प्रभु महलों की तुम सैर कराओ। चाह नहीं प्रभु पुष्प रथ पर तुम चढ़ाओ। चाह प्रभु सिर्फ इतनी मेरी कफन तिरंगा दे जाओ। मैं तो लघुकण इस धरती का दुर्लभ जीवन पाया है। कर्ज बहुत बड़ा धरा का असीम सुख पाया है। आ सकूं प्रभु इसके काम ऐसा कुछ करवा जाओ चाह प्रभु […]
आओ अमृत महोत्सव मनाएं
आओ अमृत महोत्सव मनाएं हम सीखें दुनिया को सिखाएं। बुनकर संस्कृति ताना-बाना सुंदर भारत आदर्श दिखाएं। निद्रा से जागे सर्वप्रथम औरों को जागृत किया। दूर भगाकर अंधियारे को पवित्र प्रकाश पर्व किया। लेकर ज्ञान ज्योति ज्वाला हर घर की चौखट पर जाएं। चार वेद, अट्ठारह पुराण रामायण, गीता का ज्ञान। हर बालिका माँ का रूप […]
मुट्ठी भर रेत
पगडंडी के सहारे… रेत के कुछ कणों को, हवा इतनी दूर ले गई कि रेत अपना वजूद खोकर बिछ गई वतन की राह पर कांटो को ढककर पैरों को आराम दे दिया सूरज की तपिश से स्वयं जलकर कुछ अंदरूनी भाग शीत ने सहेज लिया। पर था दिल में सुकूं किसी के काम आ गई। […]
अंतर
हे प्रभु ! मानव- मानव में अंतर क्यों ? एक सिंहासन पर बैठा एक जमीन पर बैठा क्यों ? कोई जूठन को मजबूर कोई अन्न फेंक रहा है। मोहताज पैसे दो पैसे को हाथ फैलाये खड़ा द्वार पर भय से मालिक के दुत्कार रहा संतरी उसको। सूरज ऊपर भरी दोपहरी तपती धरती खाली पैर घर- […]
एक दिन तुम ही जीतोगे
हार ना मानो लड़ते रहो सावधान हो ध्यान से। एक दिन तुम ही जीतोगे महामारी के वितान से। माना संकट का साया है धरती की धरोहर पर। मंज़र उजड़ा-उजड़ा है हर घर की चौखट पर। बादल खुशियों के छाएंगे संस्कारों की छांव से। हार ना मानो लड़ते रहो सावधान हो ध्यान से। एक दिन तुम […]
कहानी – टुलु की प्रेमकथा
यह प्रेम कथा है..असम के आदिवासी परिवार में जन्मी एक सोलह वर्षीय लड़की टुलुमुनि की। जिसको प्यार सब टुलु कहते थे। एक सीधा साधा आदिवासी असमिया परिवार कोकराझार के एक छोटे से गांव में रहता था। चार बच्चों सहित छह लोगों का यह परिवार दिहाड़ी मजदूरी करता था। टुलु इस परिवार की सबसे बड़ी बेटी थी। बंडल […]
जड़ों से जुड़े ये पुष्प हैं प्रवासी
वतन की ऊर्जा हिये में हर्षाये हरेक प्रकोष्ठ में धरा के समाये। रंग-रूप रीति-नीति धर्म-कर्म संग जड़ों से जुड़े ये पुष्प हैं प्रवासी। सांसों में थामे कस्बाई हवा को उड़ चले सातों समंदर के पार। कुरीतियों पे करते जमकर प्रहार विषमताओं के तोड़ते हैं तार। वृक्षों से झरे पर मुरझाए नहीं जड़ों से जुड़े ये […]
मैं जल-कल और हल हूँ
मैं जल-कल और हल हूँ (1) धरती का अमोल रत्न हूँ मैं जल-कल और हल हूँ। चलता जीवन मेरे सहारे हरेक जीव का मैं बल हूँ। एक बूंद को तरसती दुनिया ग्रीष्म से तड़पती दुनिया। पक्षियों ने तोड़ा प्यास से दम संभल मानव जीवन है कम। कर मत व्यर्थ अमृत को समझ ले इसके महत्व […]