ग़ज़ल
धड़कनों से इश्क का पैगाम लिख दिया,
हमने ज़िंदगी को तेरे नाम लिख दिया
मुस्कुराए तुम तो लगा धूप खिल गई,
गमगीन जब हुए तो मैंने शाम लिख दिया
मुंसिफ-ए-शहर को जब पूछा मेरा कसूर,
शराफत का उसने मुझे इल्ज़ाम लिख दिया
कुछ लोग कत्ल करके भी मासूम ही रहे,
हमने इक आह भर दी तो बदनाम लिख दिया
तलाश-ए-जिंदगी में खोया था इस कदर,
पूछा किसी ने कौन हो गुमनाम लिख दिया
उसने एक लफ्ज़ से किस्सा किया खतम,
जुदाई मेरी कहानी का अंजाम लिख दिया
— भरत मल्होत्रा