ग़ज़ल
बल रह गये तो क्या हुआ रस्सी तो जल गयी
अच्छा हुआ जो फाँस चुभी थी निकल गयी
कुछ यार दोस्तों की शय कुछ जाति का स्वभाव
करने को तू-तड़ाक कुछ तबियत मचल गयी
हर बार दिल में दर्द उठा और दब गया
इस बार पीर गेंद की माफिक उछल गयी
आओ नये सिरे से करें हम उपासना
जो अपशकुन की आई घड़ी सो टल गयी
चाही थी ‘शान्त’ मन से जो हमने स्वतंत्रता
वो क्या मिली कि मुल्क की किस्मत बदल गयी
— देवकी नन्दन ‘शान्त’