गीत/नवगीत

गीत अपनी आजादी “हुआ क्यों जन-जीवन बेहाल”

चीख-चीखकर आजादी,
करती है आज सवाल।

हुआ क्यों जन-जीवन बेहाल?
दुखी क्यों लाल-बाल औ’ पाल?
चीख-चीखकर आजादी,
करती है आज सवाल।।

बढ़ा है मँहगाई का क्लेश,
वतन में फैला हिंसा-द्वेष,
हो गया नष्ट विमल परिवेश,
नहीं पहले जैसा संगीत,
सजेंगे कैसे सुर और ताल?
चीख-चीखकर आजादी,
करती है आज सवाल।
हुआ क्यों जन-जीवन बेहाल?

सत्य का मन्त्र हुआ अस्पष्ट,
हो गया तन्त्र आत तो भ्रष्ट,
लोक की किस्मत में हैं कष्ट,
बचेगा कैसे भोला कीट,
हर तरफ मकड़ी के हैं जाल।
चीख-चीखकर आजादी,
करती है आज सवाल।
हुआ क्यों जन-जीवन बेहाल?

हुए जननायक अब मग़रूर,
नयी नस्लें मस्ती में चूर,
श्रमिक है आज मजे से दूर,
राह में काँटे हैं भरपूर,
धरा का “रूप” हुआ विकराल।
चीख-चीखकर आजादी,
करती है आज सवाल।
हुआ क्यों जन-जीवन बेहाल?

डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’

*डॉ. रूपचन्द शास्त्री 'मयंक'

एम.ए.(हिन्दी-संस्कृत)। सदस्य - अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग,उत्तराखंड सरकार, सन् 2005 से 2008 तक। सन् 1996 से 2004 तक लगातार उच्चारण पत्रिका का सम्पादन। 2011 में "सुख का सूरज", "धरा के रंग", "हँसता गाता बचपन" और "नन्हें सुमन" के नाम से मेरी चार पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। "सम्मान" पाने का तो सौभाग्य ही नहीं मिला। क्योंकि अब तक दूसरों को ही सम्मानित करने में संलग्न हूँ। सम्प्रति इस वर्ष मुझे हिन्दी साहित्य निकेतन परिकल्पना के द्वारा 2010 के श्रेष्ठ उत्सवी गीतकार के रूप में हिन्दी दिवस नई दिल्ली में उत्तराखण्ड के माननीय मुख्यमन्त्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा सम्मानित किया गया है▬ सम्प्रति-अप्रैल 2016 में मेरी दोहावली की दो पुस्तकें "खिली रूप की धूप" और "कदम-कदम पर घास" भी प्रकाशित हुई हैं। -- मेरे बारे में अधिक जानकारी इस लिंक पर भी उपलब्ध है- http://taau.taau.in/2009/06/blog-post_04.html प्रति वर्ष 4 फरवरी को मेरा जन्म-दिन आता है

2 thoughts on “गीत अपनी आजादी “हुआ क्यों जन-जीवन बेहाल”

  • परवीन चौधरी

    अति सुंदर रचना, शास्त्री जी

  • परवीन चौधरी

    अति सुंदर रचना, शास्त्री जी

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