गीत अपनी आजादी “हुआ क्यों जन-जीवन बेहाल”
चीख-चीखकर आजादी,
करती है आज सवाल।
हुआ क्यों जन-जीवन बेहाल?
दुखी क्यों लाल-बाल औ’ पाल?
चीख-चीखकर आजादी,
करती है आज सवाल।।
बढ़ा है मँहगाई का क्लेश,
वतन में फैला हिंसा-द्वेष,
हो गया नष्ट विमल परिवेश,
नहीं पहले जैसा संगीत,
सजेंगे कैसे सुर और ताल?
चीख-चीखकर आजादी,
करती है आज सवाल।
हुआ क्यों जन-जीवन बेहाल?
सत्य का मन्त्र हुआ अस्पष्ट,
हो गया तन्त्र आत तो भ्रष्ट,
लोक की किस्मत में हैं कष्ट,
बचेगा कैसे भोला कीट,
हर तरफ मकड़ी के हैं जाल।
चीख-चीखकर आजादी,
करती है आज सवाल।
हुआ क्यों जन-जीवन बेहाल?
हुए जननायक अब मग़रूर,
नयी नस्लें मस्ती में चूर,
श्रमिक है आज मजे से दूर,
राह में काँटे हैं भरपूर,
धरा का “रूप” हुआ विकराल।
चीख-चीखकर आजादी,
करती है आज सवाल।
हुआ क्यों जन-जीवन बेहाल?
—
— डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’
अति सुंदर रचना, शास्त्री जी
अति सुंदर रचना, शास्त्री जी