ग़ज़ल : वफ़ा जिनमें न हो वो रिश्ते अक्सर टूट जाते हैं
वफ़ा जिनमें न हो वो रिश्ते अक्सर टूट जाते हैं
अगर कमज़ोर हो बुनियाद तो घर टूट जाते हैं
न आए फिर कभी हमको तुम्हारी याद से कहना
हवा के हल्के झोंके से भी खण्डहर टूट जाते हैं
हमारे और तुम्हारे भी तो दो ही हाथ हैं प्यारे
ये मज़बूरी की ताक़त है कि पत्थर टूट जाते हैं
अगर पानी न हो तो सूख जाती हैं खड़ी फ़सलें
बहुत पानी बरसता है तो छप्पर टूट जाते हैं
हमेशा सर क़लम हो जुल्म के हाथों ये कब मुमकिन
कभी मज़लूम के हाथों भी ख़ंजर टूट जाते हैं
ग़ज़ल में ज़िन्दगी लाने की कोशिश करता हूँ लेकिन
हमेशा यूँ ही होता है कि मंज़र टूट जाते हैं
— ए. एफ़. ’नज़र’
हमेशा सर क़लम हो जुल्म के हाथों ये कब मुमकिन
कभी मज़लूम के हाथों भी ख़ंजर टूट जाते हैं वाह किया बात है .
सुन्दर ख्याल
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