ग़ज़ल : दिलों में चाह होती है कभी ख़ंजर नहीं होते
दिलों में चाह होती है कभी ख़ंजर नहीं होते
हमारे गाँव में ये बदनुमा मंज़र नहीं होते
वो खुश रहते हैं अपने चार तिनकों के नशेमन में
परिन्दों के तो सोने चाँदियों के घर नहीं होते
बहुत कम ऐसा होता है कोई अच्छा लगे दिल को
सफ़र में खूबसूरत हादसे अक्सर नहीं होते
न थक कर बैठ सकता हूँ न खुलकर उड़ सकूँ यारब
बड़ा होता फ़लक या तो या मेरे पर नहीं होते
सलीक़े ज़िन्दगी के धूप में चलने से आते हैं
बहुत से तजुरबे ऐसे हैं पढ़-लिखकर नहीं होते
— ए. एफ़. ’नज़र’