घनाक्षरी : मन बावरा
मन को मरोड़ तोड़, विषयों को पीछे छोड़,
मन को बनाके दास, मन पर राज कर |
मन सदा भरमावें, उद्देश्यहु आड़े आवे,
मन का दमन कर, पूर्ण सारे काज कर |
राह भटकावें मन, यूँ ही डरपावें मन,
मन को नकार कर, जीत का आगाज कर |
संयम का बैरी मन, बावरा अहेरी मन,
मनमानी छोड़ अब, जीवन का साज कर |
— नीतू शर्मा, जैतारण