मुक्तक/दोहा

मुक्तक

ख्वाब को आंसुओं में बहाते नहीं आस के दीप को यूं बुझाते नहीं जो चुनी मंजिलें प्राप्त उनको करों मोड़ को देख पथ छोड़ जाते नहीं। लोग कुछ भी कहे ध्यान मत दीजिये हार से जो मिला वह सबक लीजिये व्यर्थ की बात पर गौर करना नहीं लक्ष्य से ना नजर को अलग कीजिये। आस […]

गीतिका/ग़ज़ल

निवेदन

स्त्री करती तुमसे निवेदन मेरा भी सम्मान रखना।   घर को मन्दिर सा कर दूंगी दिल में मेरा स्थान रखना।   फिक्र करूंगी सदा सभी की  तुम मेरा भी ध्यान रखना।   दुख में सम्बल बनी रहूंगी दर्द का मेरे भान रखना।   भूल ना जाऊं उड़ना कहीं पंखों में मेरे जान रखना।   बंंधी […]

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

मुसाफिर बीच राहों में,अकेले छोड़ जाते हैं तड़फता देखकर गम में,वहीं रुख मोड़ जाते हैं। नुकीले शूल इस जग में, सदा महफूज रहते है कि कोमल फूल हर कोई, मजे से तोड़ जाते हैं। समझ ले दर्द बिन बोले, वही हमदर्द होता है दिखे जो दर्द बेदर्दी, सभी मुख मोड़ जाते हैं। भटकते उम्रभर इंसान, […]

गीतिका/ग़ज़ल

गजल

उनके झूठ पर जो मौन साध लिया हमने, लोगों को लगा कि सच मान लिया हमने। हरिश्चंद्र बने फिरते झूठों के मसीहा जो, वाकिफ नहीं है कि सब जान लिया हमने। रंग बदलते गिरगिट थोडी़ सी तो शर्म करे, असली रंग जिनका पहचान लिया हमने। बेतुकी बातें कहके भूल जाते लोग शायद, हर बात को […]

कविता

लौह सलाखें

क्यों पंख समेटे पिंजरे में, टकटकी लगाए अम्बर में। आकर प्रपंच की बातों में, खुद को सौंपा किन हाथों में। जो दर्द तेरा न जान सके, न खुशी तेरी पहचान सके। वे अपने भी कैसे अपने, जिनको चुभते तेरे सपने। आजादी तेरी खलती है, उनके दानों पर पलती है। क्यों मान लिया है भाग्य यही, […]

कविता

एकाकीपन

अब सन्नाटों की ये सन-सन लुभा रही संगीत कोई बन ना समझो इसको तन्हाई ना ही कहो इसे सूनापन भा रहा अब एकाकीपन। सुकूँ मिल रहा मन ही मन हो रहा स्वयं से ऐसा मिलन ना समझो इसको लाचारी ना ही कहो इसे पागलपन भा रहा अब एकाकीपन। विचारपूर्ण सागर के अन्दर चलता रहता अमृत-मंथन […]

कविता

मेरी समझदारी

वर्षों से सम्भाल रखा है अपने हृदय में मेरी समझदारी को मित्र बनाकर, मेरी हर जिद उसे सौंपकर मैं बेफिक्र हो जाती वह भी मुझे बहलाकर अपना फर्ज निभाती… किन्तु कभी-कभी यही मित्र मुझे शत्रु सी प्रतीत होती, मेरे सपनों की दुनिया उजाड़ने मानो हर बार आ जाती मेरे अरमानों का गला घोंटने मुझे समझाने-बुझाने… […]

कहानी

शक्ति की विजय

वैभवी मेरे बचपन की सहेली। दोनों ने साथ ही पढाई पूरी की और एक ही दफ्तर में नौकरी भी मिल गई। दोनों में इतनी गहरी दोस्ती हो गई थी कि एक दूसरे के लिए सगी बहनों से भी बढ़कर थी। वैभवी की शादी के बाद उसे नौकरी छोड़नी पड़ी और हमारा साथ भी छूट गया। […]

कविता

आँसू की बरसात

नयन कभी जो बादल बनकर आँसू की बरसात हैं करते, मन की तप्त ज़मीं को थोड़ा शीतल,निर्मल, शान्त ये करते, अाँसू की भी चमक निराली बिजली बन पलकों पे चमकते, सिसकियाँ भर गर्जनाएं होती भोले-भाले सपने हैं डरते, नयन कभी जो बादल बनकर आँसू की बरसात हैं करते.

कविता

खुद को टटोले तो अच्छा है

झूठ मधुर मधु के जैसा है, मीठा बोले तो अच्छा है। विष समान कटु लगे सत्य, सच ना बोले तो अच्छा है। राज राज में राज बसा है, राज ना खोले तो अच्छा है। सोच-सोचकर इतना सोचा, कुछ ना सोचे तो अच्छा है। बातों के बन जाते बतंगड़, मुँह ना खोले तो अच्छा है। नुक्स […]