नभाटा ब्लॉग पर मेरे दो वर्ष – 12
अपनी टीम में शामिल करने का लालच
नव भारत टाइम्स (नभाटा) में उस समय दो समूहों के ब्लॉग छपते थे. एक समूह में नभाटा के अपने लेखकों की टीम थी जिनको शायद कुछ पारिश्रमिक भी दिया जाता था. दूसरा समूह मेरे जैसे अन्य लेखकों का था, जो मुफ्त में केवल छपने के लिए लिखते थे. नभाटा के संपादक महोदय इस ब्लॉग पर नित्य यह घोषणा करते थे कि इस समूह में अच्छा लिखने वाले लेखकों को वे अपनी टीम में शामिल करेंगे. इस घोषणा के कारण मैं अच्छे से अच्छा लिखने की कोशिश करता था. मुझे यह लालच था कि शायद मुझे भी इस टीम में जगह मिल जाये.
जब यह घोषणा होते हुए लम्बा समय हो गया और मेरी जानकारी में एक भी लेखक को नभाटा ने अपनी टीम में शामिल नहीं किया, तो मैंने ईमेल भेजकर पूछा कि आप ऐसा कब करेंगे और इस हेतु लेखकों का चयन करने की आपकी कसौटी क्या है. मुझे इसका पहले कोई उत्तर नहीं मिला. फिर मैंने जब एक रिमाइंडर भेजा, तो कई दिन बाद प्रधान संपादक नीरेंद्र नागर का उत्तर मुझे मिला. इस उत्तर से पता चला कि उन्होंने ऐसे चयन की कोई कसौटी ही तय नहीं की थी. उन्होंने मुझसे ही पूछा कि आप अपने सुझाव दीजिये कि टीम हेतु ब्लोगरों का चयन कैसे किया जाये.
इसका सीधा मतलब यह है कि संपादक महोदय यों ही ब्लोगरों को सब्जबाग़ दिखा रहे थे और उनको अपनी टीम बढ़ने में कोई रूचि नहीं थी. खैर, मैंने अपनी समझ के अनुसार उनको कई सुझाव भेज दिए, जिनके आधार पर ब्लोगरों को छांटा जा सकता था. मेरे इन सुझावों का भी कोई उत्तर नहीं मिला. मैंने उनको रिमाइंडर भी भेजा पर उत्तर आज तक नहीं आया.
नाथूराम गोडसे पर पाठ
मैं कभी कभी अपने लेखों में नाथूराम गोडसे की चर्चा करता था. इस पर मुझे एक अन्य ब्लोगर सचिन परदेशी द्वारा चुनौती दी गयी थी कि मैं नाथूराम गोडसे के ऊपर एक पाठ लिखूँ, जिसे भारत के छात्रों को पढ़ाया जा सके। इस चुनौती को स्वीकार करके मैंने एक पाठ लिखा जिसका लिंक नीचे दिया गया है.
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/Khattha-Meetha/entry/%E0%A4%A8-%E0%A4%A5-%E0%A4%B0-%E0%A4%AE-%E0%A4%97-%E0%A4%A1%E0%A4%B8-%E0%A4%8F%E0%A4%95-%E0%A4%AA-%E0%A4%A0
इस लेख पर बहुत टिप्पणियाँ आयीं. बहुत लम्बी बहस चली. अनेक अशोभनीय टिप्पणियाँ भी की गयीं, जिनमें से कई को मैंने हटा दिया और कई को मैंने भाषा संयत रखने की चेतावनी भी दी. आप इन सभी टिप्पणियों को ऊपर के लिंक में पढ़कर इस बहस का आनंद ले सकते हैं.
— विजय कुमार सिंघल
श्रावण शु. 9, सं. 2073 वि. (12 अगस्त, 2016)