ग़ज़ल : खुशी में ग़म में ढलती जिन्दगानी एक जैसी है
खुशी में ग़म में ढलती जिन्दगानी एक जैसी है
जुदा हैं नाम सबके और कहानी एक जैसी है
नदी दरिया समुन्दर लहर बादल अश्क और शबनम
अलग हैं रूप पानी के रवानी एक जैसी है
बड़े ही काम की शय है रहे क़ाबू में यह जब तक
बिगड़ जाए तो आतिश और जवानी एक जैसी है
नहीं कुछ फ़र्क राजा रंक में दरवेश के दर पर
यहाँ हर आदमी की मेजबानी एक जैसी है
वही दुनिया की फ़िक्रें और वही अपनाइयत का ग़म
कबीरो मीर ग़ालिब सबकी बानी एक जैसी है
— ए. एफ़. ’नज़र’