कविता

शब्द बनकर रह गए हैं

मिटटी के चूल्हे  पर 
हांड़ी चढ़ाना
लकड़ी की आग पर 
खाना पकाना 
धुएँ से 
माँ की आँखों से 
आँसुओं का गिरना 
खीजना,चिल्लाना,
किताबों में 
कहानियाँ बनकर,
लोगों की जुबान पर 
शब्द बनकर रह गए हैं  I 
फुलवारियों में 
तितलियों का आना- जाना 
कोयल का कूकना
रात में 
जुगनू का चमकना 
अट्टाहास यूँहीं 
फिसल कर गिरना 
खामोश 
मुँह दबाए 
हँसना,फुसफुसाना 
लोगों की जुबान पर 
शब्द बनकर रह गए हैं I 

अशोक बाबू माहौर

नाम - अशोक बाबू माहौर  साहित्य लेखन :हिंदी साहित्य की विभिन्न विधाओं में संलग्न।  प्रकाशित साहित्य :हिंदी साहित्य की विभिन्न पत्र पत्रिकाएं जैसे स्वर्गविभा, अनहदक्रति, साहित्यकुंज, हिंदीकुुुंज, साहित्यशिल्पी, पुरवाई, रचनाकार, पूर्वाभास, वेबदुनिया, अद्भुत इंडिया, वर्तमान अंकुर, जखीरा, काव्य रंगोली, साहित्य सुधा, करंट क्राइम, साहित्य धर्म,  इंदौर समाचार पत्र,पूर्वांचल प्रहरी, रवि पथ,घूँघट की बगावत,दैनिक राष्ट्र प्रकाश,साहित्य प्रीति,युग करवट,श्रीराम एक्सप्रेस,पुष्पांजलि,विचार वीथी,कविता बहार,हिंदी रक्षक,हरियाणा प्रदीप,आर्मस्टेल गंगा, जय विजय आदि में रचनाऐं प्रकाशित।  सम्मान : ई - पत्रिका अनहदकृति की ओर से विशेष मान्यता सम्मान 2014-15 ,नवांकुर साहित्य सम्मान ,काव्य रंगोली साहित्य भूषण सम्मान ,मातृत्व ममता सम्मान,निराला स्मृति सम्मान, नवसृजन साहित्य सम्मान आदि। प्रकाशित साझा पुस्तक  (1)नये पल्लव 3 (2)काव्यांकुर 6 (3)अनकहे एहसास (4) नये पल्लव 6 (5) काव्य संगम (6) तिरंगा (7) हर सिंगार (8) कविता के प्रमुख हस्ताक्षर (9) नव सृजन अभिरुचि :साहित्य लेखन।  संपर्क :ग्राम कदमन का पुरा, तहसील अम्बाह, जिला मुरैना (मप्र) 476111  मो - 8802706980

One thought on “शब्द बनकर रह गए हैं

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत खूब , मिटटी के चूल्हे पर

    हांड़ी चढ़ाना

    लकड़ी की आग पर

    खाना पकाना

    धुएँ से

    माँ की आँखों से

    आँसुओं का गिरना बचप्पन याद आ गिया .

Comments are closed.