उम्मीदों की कली
उम्मीदों की कली तभी खिलेगी
जब सोच को मंजिल मिलेगी
प्रयासों की जब काया पलटेगी
उलझी मेहनत तब सुलझेगी
एकाग्र हो शक्तियों का होगा विकास
मिटेगी जब शांति की तलाश
दर बदर हूँ इस तलाश में
बढ़ते जा रहे मंजिल की प्यास में
दुआ बददुआ को एक ही जान कर
दोनों को बराबर ताकत मानकर
अपने रंगीले अंदाज़ में
देंगे सन्देश मंच की आवाज से
कभी तो मेहनत रंग लाएगी
कभी न कभी थोड़ी क्रांति तो आएगी
लेखनी को मिलेगा उसी दिन सुकून
सही से काम आये कहीं पर मेरा जूनून
जिंदगी में आये और चले गए
ऐसे लोग तो हजारों भले गए
शब्दों से हो आहट माफ़ी है
इतना लिख पाया मेरे लिए काफी है