कविता

उम्मीदों की कली

उम्मीदों की कली तभी खिलेगी
जब सोच को मंजिल मिलेगी
प्रयासों की जब काया पलटेगी
उलझी मेहनत तब सुलझेगी
एकाग्र हो शक्तियों का होगा विकास
मिटेगी जब शांति की तलाश
दर बदर हूँ इस तलाश में
बढ़ते जा रहे मंजिल की प्यास में
दुआ बददुआ को एक ही जान कर
दोनों को बराबर ताकत मानकर
अपने रंगीले अंदाज़ में
देंगे सन्देश मंच की आवाज से
कभी तो मेहनत रंग लाएगी
कभी न कभी थोड़ी क्रांति तो आएगी
लेखनी को मिलेगा उसी दिन सुकून
सही से काम आये कहीं पर मेरा जूनून
जिंदगी में आये और चले गए
ऐसे लोग तो हजारों भले गए
शब्दों से हो आहट माफ़ी है
इतना लिख पाया मेरे लिए काफी है

कृष्ण मलिक

मेरा नाम कृष्ण मलिक है । अम्बाला जिले के एक राजकीय विद्यालय में व्यवसायिक अध्यापक के रूप में कार्यरत हूँ । योग्यता में ऑटोमोबाइल इंजीनियर हूँ । कम्प्यूटर चलाने में विशेष रुचि रखता हूँ। दिल्ली, मध्य प्रदेश, लखनऊ , हरियाणा , पंजाब एवम् राजस्थान के समाचार पत्र में मेरी रचनाएँ छप चुकी है । दिल्ली की सुप्रसिद्ध पत्रिका ट्रू मीडिया में अगस्त के अंक में मेरी एक रचना प्रकाशित हो रही है । बचपन में हिंदी की अध्यापिका के ये कहने पर कि तुम भी कवि बन सकते हो , प्रेरणा पाकर रचनाओं की शुरुआत की और 14 वर्ष की उम्र से ही कुछ न कुछ तत्व को पकड़ कर लिखना जारी रखा । आज लगभग 12 वर्ष बीत गए एवम् 150 के आस पास आनंद रस एवम् जन जागृति की काव्य एवम् शायरी की रचनाएँ कर चुका हूँ।