कविता : अशान्त मन
द्वेषाग्नि में जलता हुआ,
हर वक्त चिंता, तनाव में रहता है,
जो न मिला उसका गम है,
जो मिला वो बहुत कम है,
दिल में कई शिकवे गिले हैं
दुनियादारी में फंसकर,
बाह्य आडम्बर कर रहा,
रिश्ते नातों की अर्गलाओं से बंधा,
हैरान, परेशान है,
अरमानों का बोझ लिये,
ज़िन्दगी जी रहा है,
आदमी एकांत में भी शांत नहीं है |
— नीतू शर्मा, जैतारण
बहुत सुदर कविता. बधाई आप को नीतू शर्मा जी .
आभार आदरणीय