देश प्रेम
खंड खंड मैं उसको कर दूँ
खाल उडेढ़ के भुस मैं भर दूँ।
नजर उठाये यदि भारत पर
शीश काट के हाथ पे धर दूँ।
गद्दारी तेरे खून में बसती
वफ़ा की रश्में कैसे कर दूँ।
न कर कत्ले ,इधर से हट ले
बीच बजार सिर मुंडन कर दूँ।
नियत खोर कश्मीर को मांगे
नही मिलेगा खण्डन कर दूँ।
हाथ मिलाऔरआ गले लग जा
इननफरतो का दफन मैं कर दूँ।
— कवि दीपक गांधी
बहुत खूब
जय हिंद
बहुत खूब
जय हिंद