सामाजिक

बढ़ते बॉलीवुड के कदम

मेरा पहला लेख
आंतरिक प्रेरणा ने लेख को मजबूर किया ।
जैसा कि हम जानते हैं कि फ़िल्म जगत को मुख्य रूप से हम दो रूपों में जानते हैं बॉलीवुड और हॉलीवुड।
परन्तु बॉलीवुड हमारे हिंदी जगत का सिनेमा है इतना ही समझ में आता है । एक समय जब स्वर्ग , पत्थर के सनम , मोहम्मद रफ़ी का जमाना था । जब गानों में एक वास्तविकता एवम् आंतरिक शान्ति का एहसास हुआ करता था ।
धीरे धीरे आधुनिकता आई , औरत की साड़ी सरकी , और कन्धे से साड़ी में अंतिम दुपट्टे का मोड़ भी खत्म हुआ , घबराना नहीं ये सच्ची कहानी है । सभी को बहुत अच्छा लगने लगा ,क्या फ़िल्म है वाह देख कर मजा आ गया । सभी के कमेंट क्या गजब की आइटम थी । फिर क्या हुआ रेप पर आधारित फ़िल्म बनने लगी। जैसे जैसे इस टाइप की गर्मा गर्म फ़िल्में बनने लगी , एक तरफ लोगों को मजा आने लगा दूसरी तरफ युवा पीढ़ी उसी का अनुसरण करने लगी । अब बन्द कमरे में पति पत्नी एवम् सुहाग रात को क्या करते हैं वो भी लगभग 80 प्रतिशत दिखाया जाने लगा । देखिये भड़कना नहीं । सच तो सच है । फिर अब ये वक़्त है लिव इन रिलेशनशिप यानी शादी भी क्यों करनी जिस्म का आनन्द लो । आगे सोच मिलती है तो ठीक है नहीं सन्डे को लेफ्ट और मंडे को नेक्स्ट । निक्कर जितनी नीचे , ऊपर तो जो पहनती है उसकी कोई परिभाषा नहीं । सभी लोगों के विचार देखिये बहुत जबरदस्त फ़िल्म है सीन ही सीन है उसमें तो । मजा आ गया । परन्तु गौर करें यदि आने वाले वक़्त में यदि आपकी 7 साल की सन्तान आपसे पूछेगी पापा ये लड़का लड़की आपस में क्या कर रहें है तो भी आप सोच कर रखें कि आपको क्या कहना है । क्योंकि उसकी जिज्ञासा आप नहीं शांत करोगे तो वो बाहर कहीं आपका विकल्प ढूंढेगी। किसी लड़की का रेप होता है आप उसे इतना हाईलाइट करते हैं जैसे सबसे ज्यादा सहानुभूति आप ही को है । शेयर , टैग , लाइक , कमेंट फेसबुक पर एवम् अन्य अनुप्रोयोगों पर वायरल कर अपनी दरियादिली दिखातें है ।आप में से कितने लोग जो बॉलीवुड के आज के हालत को गलत मानकर खुलकर विरोध करना चाहते हैं । लड़कियां तो बस गिनी चुनी होंगी । अभी किसी का बलात्कार हो जाये तो मोमबत्ती लेकर ऐसे खड़ी होंगी जैसे इनसे ज्यादा सादगी की मिसाल कोई है नहीं और ये देश की सभ्यता की मूरत है । क्या आप बॉलीवुड के नंगेपन को लेकर चिंतित है , कृपया बताएं एवम् मुझे ईमेल करें फिर इस पर कोई कार्यवाही की जायेगी परन्तु मैं अकेला कुछ नहीं कर सकता मेरी आवाज को दबाने में उन्हें 1 दिन भी नहीं लगेगा जो वासनाओं का प्रदर्शन कर आज के युवाओं को भर्मित कर दोनों की जिंदगी तबाह कर रहे हैं । अभी भी समय है अपनी आने वाली पीढ़ी को बचा लें जितना हो सकता है नहीं तो ऐसा वक़्त आएगा । आप हि के बच्चे इतनी गन्दगी में जिएंगे जिसे आप आधुनिकता कहते तो रहेंगे परन्तु आप के पास उसको देखकर आत्महत्या के सिवाय कुछ नहीं बचेगा । आज की कोई ऐसी 10 फ़िल्म बता दो जिसे आप सभी परिवार सदस्य बुजुर्ग समेत देख सकते हो । जवाब ना ही होगा । परन्तु अभी तो ये 40 प्रतिशत नंगापन दिखा रहे है आने वाले वक़्त में जब 80 प्रतिशत हो जायेगा तो समझ लीजिये । स्तनों का प्रदर्शन तो लड़कियां ऐसे करती है जैसे वो बस इसी को फ़िल्म के सफल होने का आधार मानते हैं मेरे शब्द कड़े जरूर हैं परन्तु जो देख रहा हूँ लिखे बिना रह नहीं स्का । क्या आप की अंतरात्मा से पूछे कि ये 1 प्रतिशत भी आपका मन गवाही देता हैं। यदि आप का इतना ही मन है तो कुछ स्पेशल फ़िल्म बन्नी चाहिए जिसमे एडल्ट सीन हो । जिसकी वासना देखने की इच्छा हो वो अपनी इच्छानुसार देख ले । परन्तु आज टीवी का कौन सा चैनल चलायें ये सोच में पढ़ जाते हैं ।परिवाद में प्रति व्यक्ति का पर्सनल रूम का रिवाज भी इसी शर्म ने शुरू किया है एडल्ट सीन देखने का मन करता है युवा पीढ़ी का परन्तु घरवालों के सामने देख नही पातें। युवा पीढ़ी असहनशील एवम् चिड़चिड़ी हो रही हैं। आज भी लड़कों के मन को बहाने वाला आकर्षण सूट सलवार में ही है । परन्तु लड़कियां सोचती हैं बिना आँचल छाती की रॉब दिखा कर लड़कों को आकर्षित कर लेंगी ये गलतफहमी है वो आपको अपनी मेहबूबा के रूप में देखकर नहीं आकर्षित होंगे बल्कि आँखों की प्यास बुझाने मात्र , कुछ समय के लिए वासना पूर्ति का साधन समझ कर काम चलाने का माध्यम ही समझेंगे । जीन्स टॉप की जगह आँचल ढका सूट भी पहन ले मेरी बहन और माँ तो 70 प्रतिशत आँखों में गन्दगी यहि दूर हो जायेगी । कुछ लड़कियां ये कहती अपनी सोच सही रखो। नारी को सशक्त किसलिए बेमाने का प्रयत्न किया गया जो पुरुष उन पर अत्याचार करते थे मारपीट वगैरा उसके खिलाफ खड़ी हो , ये नहीं नग्नता का प्रदर्शन कर ये दिखाएँ , हम broad minded है । डूब मरें ऐसी सोच जो अंग प्रदर्शन को सब कुछ मानती है । यही तो है बॉलीवुड का जूनून । सास बहु का और तलाक का सबसे बड़ा कराने षड्यंत्र से भरपूर नाटकों का होना है । जाग जाओ भारतीयों। यदि आपकी इंसानियत एवम् अंतरात्मा दुबारा से आशिकी की सादगी मांगती है एवम् हवस एवम् वासनाओं के प्रदर्शन उदहारण के तौर पर इमरान हाश्मी जैसी कलाओं के विरुद्ध अंदर से आपको कुछ कहती है तो मुझे ईमेल करें । 200 लोगों के होते ही अभियान शुरू हो जायेगा । जागृति का । देखता हूँ क्या 100 करोड़ की जनता में ऐसी सोच रखने वाले 200 लोगों के आगे आने में कितनी देर लगती हैं ।
मेरी ईमेल [email protected]
आपको मेरी इस पोस्ट पर कोई व्यंग्य करना हो खुल कर इस पेज पर करें अच्छा या बुरा स्वागत है । जागृति में सहयोग के लिए इसे शेयर कर इस बात को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने में सहयोग कर सकते हैं।
आपका कवि एवम् शायर
कृष्ण मलिक© लेख नंबर-1/2016 14.07.2016

कृष्ण मलिक

मेरा नाम कृष्ण मलिक है । अम्बाला जिले के एक राजकीय विद्यालय में व्यवसायिक अध्यापक के रूप में कार्यरत हूँ । योग्यता में ऑटोमोबाइल इंजीनियर हूँ । कम्प्यूटर चलाने में विशेष रुचि रखता हूँ। दिल्ली, मध्य प्रदेश, लखनऊ , हरियाणा , पंजाब एवम् राजस्थान के समाचार पत्र में मेरी रचनाएँ छप चुकी है । दिल्ली की सुप्रसिद्ध पत्रिका ट्रू मीडिया में अगस्त के अंक में मेरी एक रचना प्रकाशित हो रही है । बचपन में हिंदी की अध्यापिका के ये कहने पर कि तुम भी कवि बन सकते हो , प्रेरणा पाकर रचनाओं की शुरुआत की और 14 वर्ष की उम्र से ही कुछ न कुछ तत्व को पकड़ कर लिखना जारी रखा । आज लगभग 12 वर्ष बीत गए एवम् 150 के आस पास आनंद रस एवम् जन जागृति की काव्य एवम् शायरी की रचनाएँ कर चुका हूँ।