सामाजिक

आजादी के मायने

15 अगस्त !

वो तारीख जिसका इतिहास भारत का बच्चा बच्चा जानता है । क्या हुआ था ? क्यों मनाया जाता है ? सभी जानते है सो उसपर ना जाते हुए हम आज कुछ और ही चर्चा कर लेते हैं ।

15 अगस्त को सुबह देश भर में सभी सरकारी इमारतों ; मंत्रालयों ;न्यायालयों ; मंत्रालयों ; सचिवालयों; विद्यालयों तथा सहकारी संस्थाओं की इमारतों पर पुरे मान सम्मान के साथ हमारा प्यारा तिरंगा फहराया जाता है ।

लालकिले की प्राचीर से हमारे प्रिय प्रधानमंत्री देश के नाम सन्देश देते हैं । कभी नयी घोषणा तो कभी वही पुराने संकल्प दुहराए जाते हैं ।
महामहिम राष्ट्रपति शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और तीनों सेनाप्रमुखों की सलामी स्वीकार करते हैं । इसके बाद शुरू होती है राजपथ पर विभिन्न सैन्य टुकड़ियों का फ्लैगमार्च ।

विभिन्न राज्यों की अलग अलग संस्कृति की झांकियों के नज़ारे देखकर मन में “,अनेकता में एकता “की भावना बलवती हो जाती है ।राजपथ पर सैनिक साजोसामान आधुनिक हथियारों के प्रदर्शन के साथ ही सीमा सुरक्षाबल के जवानों द्वारा मोटर साइकिल पर हैरत अंगेज कारनामों के प्रदर्शन के साथ ही इस समारोह का पटाक्षेप हो जाता है ।

ऐसा लगभग हर साल होता है । क्या इसमें नया कुछ किया जा सकता है ? जी हाँ ! बिलकुल बहुत कुछ नया किया जा सकता है ।
आजादी के सात आठ सालों बाद ही हमारे प्यारे पंडित नेहरू ने राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ को स्वतंत्रता दिवस की परेड में शामिल होने का न्योता दिया था । इसे संघ की सेवाभावना और सामाजिक क्षेत्र में किये गए उल्लेखनीय कार्यों के इनाम के रूप में देखा गया ।

इस बार भी ऐसा ही कुछ परंपरा से हटकर होने की खबर है । अभी कल ही एक अख़बार में खबर पढ़ कर बहुत अच्छा लगा । खबर थी ओडिशा में किन्नरों के एक समूह द्वारा परेड का रिहर्सल । इस बार किन्नरों को परेड में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया है ।
समाज और कानून दोनों से उपेक्षित किन्नरों को मुख्यधारा में लाने का इससे बढ़िया प्रयास और क्या होगा ? किन्नर भी हमारे देश के ही नागरिक हैं । महिला पुरुष या किन्नर होना किसी के अपने हाथ में नहीं होता । इस पर पूर्णतया कुदरत का ही नियंत्रण होता है ।
समाज में व्याप्त उंच नीच की गहरी खाई को पाटने के लिए सरकार ने 1956 में ही हरिजन कानून को पास करके समाज के दबे कुचले शोषित लोगों को समाज की मुख्यधारा में लाने का प्रयास किया जो आज सार्थक दिखाई पड़ रहा है ।

दुर्भाग्य की बात है कि आजादी के इतने सालों बाद तक समाज और हमारे कानून द्वारा भी उपेक्षित किन्नर समाज को सरकारी उपेक्षा का शिकार होना पड़ा है । समाज के रहमोकरम पर जिन्दा रहना ही शायद इस समाज की नियति बन गयी है जो प्रत्यक्ष में ईश्वर का इनके प्रति अन्याय ही है ।

जन्म से ही परिवार और समाज से उपेक्षित कुछ किन्नर भिक्षाटन से विमुख होकर देह व्यवसाय या अपराधिक गतिविधियों में भी लिप्त पाए गए हैं । ऐसे में इन्हें भी सम्मान के साथ जीने और आर्थिक सुरक्षा के लिए कुछ नीतियाँ बनाये जाने की जरूरत है । समाज की मुख्यधारा में लाने के लिए इनपर भरोसा करके इन्हें कुछ जिम्मेदारी दिए जाने की आवश्यकता है । महिलाएं सुरक्षाकर्मी की नौकरी कर सकती हैं तो किन्नरों को मौका क्यों नहीं मिलना चाहिए ?

किन्नर समाज की ही लक्ष्मी त्रिपाठी अपने समाज के उत्थान के लिए भरसक प्रयत्न कर रही हैं । सदियों पुरानी परंपरा को चुनौती देते हुए लक्ष्मी त्रिपाठी ने संतों के अखाड़े की तरह से ही किन्नर अखाडा की भी स्थापना की है । इस किन्नर अखाड़े की वह स्वयं महामंडलेश्वर हैं ।
हिन्दू समाज का एक अंग होकर भी  सभी तरह के हिन्दू कर्मकांडों से वंचित लक्ष्मी त्रिपाठी ने किन्नरों के पिंड दान कराये जाने की घोषणा की है ।

हमें उनके इस कदम की सराहना करनी चाहिए । सरकार द्वारा परेड में शामिल होने के लिए किन्नरों को आमंत्रित करने के फैसले का भी स्वागत किया जाना चाहिए । देर से ही सही सरकार ने अच्छा कदम उठाया है ।इससे भविष्य में उनके लिए कुछ और किये जाने की आशा बलवती हुयी है ।

सरकार हर साल किसी वंचित तबके के लिए भी कुछ सार्थक प्रयास करे तो एक दिन ऐसा अवश्य आएगा जब समाज में सभी तबके के लोग एक सा महसूस करेंगे । भाईचारा प्रेम और सदभाव से होकर ही विकास की गंगा बहती है । तब हमारी तरक्की को दुनिया की कोई ताकत नहीं रोक सकती  और वही समय हमारे लिए सही मायने में आजादी का महोत्सव मनाने का होगा ।

 

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।

6 thoughts on “आजादी के मायने

  • राज कुमार भाई , आप का यह लेख सराहनीय है, इस से लगता है, आप समाज कलियानं में कितनी दिलचस्पी लेते हैं . किन्नरों के बारे में आप की बात अछि लगी कि अगर महलाओं को आगे बढ़ने का हौसला मिल रहा है तो किन्नरों को क्यों नहीं .पुरानी परम्पराएं इस नए युग में valid नहीं हैं . जब मेरे भतीजे की इंडिया में शादी हुई थी तो चार किन्नर हमारे घर आये थे. गाँव वालों तो उन की हरकतों से हंस रहे थे लेकिन मैं इसे human डीग्रेडेशन महसूस कर रहा था . i felt sick .अब जाग्रति आ रही है और यह बहुत अछि बात है .

    • राजकुमार कांदु

      aapka bahut bahut dhanywad / i,m trying writing comment since yesterday but couid not .

      • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

        कोई बात नहीं राजकुमार भाई , ऐसा कभी कभी सब के साथ हो जाता है .

  • राज कुमार भाई , आप का यह लेख सराहनीय है, इस से लगता है, आप समाज कलियानं में कितनी दिलचस्पी लेते हैं . किन्नरों के बारे में आप की बात अछि लगी कि अगर महलाओं को आगे बढ़ने का हौसला मिल रहा है तो किन्नरों को क्यों नहीं .पुरानी परम्पराएं इस नए युग में valid नहीं हैं . जब मेरे भतीजे की इंडिया में शादी हुई थी तो चार किन्नर हमारे घर आये थे. गाँव वालों तो उन की हरकतों से हंस रहे थे लेकिन मैं इसे human डीग्रेडेशन महसूस कर रहा था . i felt sick .अब जाग्रति आ रही है और यह बहुत अछि बात है .

  • लीला तिवानी

    प्रिय राजकुमार भाई जी, स्वतंत्रता दिवस पर इतनी सुंदर रचना कम ही पढ़ने-देखने को मिलती है. कोमल की कमनीयता से बात शुरु हुई, रानी की रमणीयता पर ठहरी और अब स्वतंत्रता दिवस समारोह में किन्नरों के हिस्सा लेने से आगे बढ़ी. धाराप्रवाह लेखनी से निःसृत एक सर्वश्रेष्ठ एवं अतुलनीय रचना के लिए आभार.

    • राजकुमार कांदु

      श्रद्धेय बहनजी ! आपकी नायाब प्रतिक्रिया मेरा उत्साह दुगुना कर देती हैं । स्वतंत्रता दिवस के पर्व पर कुछ अलग लिखने की चाहत को यह समाचार पढ़कर बल मिला और एक घंटे में ही यह रचना तैयार हो चुकी थी । जल्दबाजी में त्रुटियों की संभावना से आशंकित था सो आपको तकलीफ दिया । दोनों ही रचना आपको अच्छी लगी पढ़कर मैं परीक्षा उत्तीर्ण किये हुए विद्यार्थी सा महसूस कर रहा हूँ। नायाब उत्साहवर्धक सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका ह्रदय से धन्यवाद ।

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