गीत/नवगीत

गीत : गाता गान तिरंगे का

कोई नहीं दुनिया में सानी, मेरी जान तिरंगे का,
मैं दीवाना गली गली में, गाता गान तिरंगे का

हमलावरों से खेलीं हमने, कितनी खून की होलियाँ
हसते हसते खाई हैं, सीनों पर अपने गोलियाँ
ना जाने कितनी माँओं ने, अपने बेटे खोए हैं

सदियों की गुलामी में हम, कितने आँसू रोए हैं,
तब जाकर पाया हमने, ये सम्मान तिरंगे का,
मैं दीवाना गली गली में, गाता गान तिरंगे का,

हमने हिमालय की चोटी पे, इसको जा फहराया है,
कारगिल में इसकी खातिर, अपना खून बहाया है,
इसकी रक्षा करते हैं हम, सागर में, मैदानों में,
इसको लिए जवान खड़े हैं, तपते रेगिस्तानों में,
हिंदू, मुस्लिम, सिख, इसाई, सबको मान तिरंगे का,
मैं दीवाना गली गली में, गाता गान तिरंगे का,

जी चाहे फहराऊँ तुझको, महलों और मकानों में,
तेरे यश का गान करूँ मैं, आरती और अज़ानों में,
चाहूँ मैं दम मेरा निकले, बस तेरी ही राहों में,
वीरगति को प्राप्त करूँ में, तुझको ले के बाहों में,
ओढ़ा देना मेरे शव को, कफन महान तिरंगे का,
मैं दीवाना गली गली में, गाता गान तिरंगे का।

जय हिन्द, वन्दे मातरम।

— भरत मल्होत्रा

*भरत मल्होत्रा

जन्म 17 अगस्त 1970 शिक्षा स्नातक, पेशे से व्यावसायी, मूल रूप से अमृतसर, पंजाब निवासी और वर्तमान में माया नगरी मुम्बई में निवास, कृति- ‘पहले ही चर्चे हैं जमाने में’ (पहला स्वतंत्र संग्रह), विविध- देश व विदेश (कनाडा) के प्रतिष्ठित समाचार पत्र, पत्रिकाओं व कुछ साझा संग्रहों में रचनायें प्रकाशित, मुख्यतः गजल लेखन में रुचि के साथ सोशल मीडिया पर भी सक्रिय, सम्पर्क- डी-702, वृन्दावन बिल्डिंग, पवार पब्लिक स्कूल के पास, पिंसुर जिमखाना, कांदिवली (वेस्ट) मुम्बई-400067 मो. 9820145107 ईमेल- [email protected]