ग़ज़ल
तेरी जुदाई आज फिर अश्कों में ढल गई,
होते ही शाम यादों की इक शमा जल गई
माना था बड़ी मुश्किलों से दिल-ए-बेकरार,
देखा जो तुझे फिर से तबियत मचल गई
तय करके हम चले थे कि कहेंगे उनको क्या,
लेकिन हुआ जो सामना ज़ुबां फिसल गई
सोचा था तेरे बंदे भी होंगे तेरी तरह,
पर देखी जो तेरी दुनिया तो राय बदल गई
मैं उम्र भर तकदीर से लड़ता रहा तनहा,
कुछ इस तरह ये जिंदगी अपनी निकल गई
सुनकर मेरे मरने की खबर कह रहे हैं वो,
अच्छा हुआ मियां जो ये बला भी टल गई
— भरत मल्होत्रा
बहुत खूब