ग़ज़ल
अच्छे बुरे वक्त में भी जो बिल्कुल एक समान रहे,
इस दुनिया में उसकी अपनी एक अलग पहचान रहे
जब भी सजदा किया है मैंने यही दुआ बस माँगी है,
आए कितनी भी मुश्किल पर कायम मेरा ईमान रहे
रह ना जाए हसरत कोई जो चाहो वो कर गुज़रो,
लेकिन दिल ना दुखे किसी का बस इतना सा ध्यान रहे
छोड़ो आते कल की चिंता और बीते कल का गुस्सा,
उतना सफर आसान रहेगा जितना कम सामान रहे
वक्त-ए-रूख्सत से पहले कुछ ऐसा करके जाना तुम,
कि तेरे बाद भी बाकी तेरी आन बान और शान रहे
मंदिर-मस्जिद के झगड़े का हल करते हैं इस तरह,
राम को रख लो तुम दिल में मेरे दिल में रहमान रहे
— भरत मल्होत्रा