रक्षाबंधन का पर्व
ना स्वार्थ का लेप , ना इच्छाओं का अवलंबन
है चट्टान सा मज़बूत , भाई – बहन का बंधन
पर्व है रेशम के धागे का , याद करूँ मैं तुझको भाई
घर से मेरे दूर है बहना , कैसे बांधे स्नेह , कलाई
रक्षा का बंधन बाँधकर तुम , सुरक्षा का हक़ लेना
भाई-बहन का प्रेम पर्व राखी , याद हमें कर लेना
आकांक्षा हर भाई की , मिले बहन का प्यार
राखी सजे कलाई पर , ख़ुशियाँ मिले अपार
ना देना मुझको हिस्सा , माँ-बाप की वसियत से
चाहे कुछ भी लिख जाए , वो भय्या मेरे हक़ में
नही भेजना तोहफ़े मुझको , चाहें तीज-त्योहारों पर
पर थोड़ा सा हक़ दे देना , बाबुल के गलियारो पर
रुपया पैसा कुछ ना चाहू , बोले मेरी ये राखी
आशीर्वाद मिले मौक़े से मुझको , इतना है काफ़ी
मेघ भाई धरती बहन , मनाराहे दोनो ये त्योहार
वर्षा का इसने दिया है , उसको अनमोल उपहार
— राज मलपाणी
शोरपुर (कर्नाटक)
8792 143 143