कविता : भैया सुनो!
भैया सुनो!
आज भी मेरे लिए
अनमोल हो तुम।
आज भी मन तरसता है
तुम्हारे साथ को
तुम्हारी एक बात को ।
तुम व्यस्त हो गए हो
अपनी दुनिया में
और व्यस्त हो गई हूँ मैं भी।
लेकिन फिर भी
जब कभी भी
होती हूँ अकेली
याद आते हैं
दिन बचपन के
जब हम तुम दोनों बच्चे थे
कितने मन के सच्चे थे
लड़ते-झगते पल में
और भूल भी जाते
कोई जगह नही थी मन में
जहाँ रखते उन बातों को
जिससे तुमने रुलाया मुझे
खिझाया और सताया मुझे
वो दिन कहाँ खो गए
क्यों हम बड़े हो गए
क्यों समझने लगे
अर्थ बेवजह की बातों का
जो अनजाने में ही
मन दुखा जाते हैं।
भैया सुनो!
चाहें आज हम दूर हैं
हालात से मजबूर हैं
व्यस्त हैं दुनियादारी में
लेकिन फिर भी
बंधे हैं एक अनजाने डोर से
जो दिलाती है याद हमें
एक डाली के फूल हैं हम
भैया सुनो!
आज भी मेरे लिए
अनमोल हो तुम।।
— सुमन शर्मा
अति सुंदर भावाभिव्यक्ति.
भावपूर्ण कविता !