बंधन
हर बंधन
शुरू होता सांसों से
खत्म भी होता
साँसों का ही
फैला रखा जो जाल
उलझा मैं हूँ
मजाल क्या है
भूल जाये उसको
जिसने रचा
दे जन्म पूरा
कार्य अपना करे
सोच विचार
की गहराई
से दीखती उसकी
शैली चारूता
— डॉ मधु त्रिवेदी
हर बंधन
शुरू होता सांसों से
खत्म भी होता
साँसों का ही
फैला रखा जो जाल
उलझा मैं हूँ
मजाल क्या है
भूल जाये उसको
जिसने रचा
दे जन्म पूरा
कार्य अपना करे
सोच विचार
की गहराई
से दीखती उसकी
शैली चारूता
— डॉ मधु त्रिवेदी
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बहुत खूब !