दीए नहीं बिकेंगे पापा
पापा को कड़ी धूप में पसीने से भरे देख और बड़ी मेहनत से सुन्दर तरह तरह के आकार के दीए बनाते देख पांच साल की सुनीता भाग कर पापा के पास आकर खड़ी होकर बोली “दीए नहीं बिकेंगे पापा” मैं सच कह रही हूँ। सुनीता को प्यार से पास बैठाकर रघु ने पूछा ऐसा क्यों कह रही है मेरी लाडली। बड़ी मासुमियत से सुनीता ने कहा पापा आजकल वो सुन्दर मोमबतियां और चम चम करती लाईट वाली लड़ियां लगाते हैं न सब। मुझे सब पता है मेरे साथ स्कूल में पड़ने वाले सभी सहपाठी यही कह रहे थे कि तेरे पापा के वो दीए तो कोई नहीं खरीदेगा न ही घर पर लगाएगा। रघु तो सब जानता था पर फिर भी बरसों से अपने पुशतैनी काम को घाटे पर भी करने का मन करता था। जाने कैसा लगाव था कि चाह कर भी मन नहीं मानता था। पर इस बार पता नहीं भगवान ने ऐसा चमत्कार कैसे कर दिया था रंग बिरंगे दीए को देख कर सभी रघु के पास आकर्षित होकर खरीदने आ रहे थे। शायद आधुनिक चीज़ों ने एक बार फिर पुराने और सादगी से भरपुर अपने से दिखने वाले उन दीयों के लिए थोड़ी सी जगह बना दी थी, या शायद काफी सालों से इस्तेमाल करते करते लड़ियों के अलावा नई पीड़ी को कुछ नए तरीके से घर सजाने का मन हो गया हो। सुनीता भी पास ही खड़ी हैरान आँखों से पापा के ठेले पे दीयों को खरीदते लोगों को देख रही थी।।।
कामनी गुप्ता ***
जम्मू !
आज कुछ लोग अपने होटलों ढाबों में पुरानी चीज़ें रख रहे हैं जो बहुत अछि लगती हैं . एक दफा समय फिर पीछे की ओर देखने लगता है, इसे कुछ लोग back to basics कह देते हैं .लघु कथा अछि लगी .
आपका बहुत धन्यवाद सर जी !
कुटीर ग्रामोद्योग एक दिन फिर से सुजलाम सफलाम होंगे बस जरूरत है सुनीता के पापा की तरह से हौसला बनाये रखने की । बहुराष्ट्रीय कंपनियों के उत्पाद तो वैसे ही होते हैं जैसे चार दिन की चांदनी ………….
कुटीर ग्रामोद्योग एक दिन फिर से सुजलाम सफलाम होंगे बस जरूरत है सुनीता के पापा की तरह से हौसला बनाये रखने की । बहुराष्ट्रीय कंपनियों के उत्पाद तो वैसे ही होते हैं जैसे चार दिन की चांदनी ………….
जी सही कहा आपने
धन्यवाद जी !
प्रिय सखी कामनी जी, कभी-कभी विश्वास से ऐसे चमत्कार हो ही जाया करते हैं. अति सुंदर, मार्मिक व सार्थक रचना के लिए आभार.
आपका बहुत धन्यवाद जी !