मन का मौसम कविता बन जाये
एक उदास सी शाम में,
अंधेरों के पीछे से ,
जब शिद्दद्त से महसूस किया मैंने
एक अधूरी याद का निकलकर मेरे वजूद से ,
आ चिपकना ……!
सच मानिये,
बीती यादों का काफिला ,
आँखों से होकर गुजरने लगे कुछ इस तरह ,
जैसे , साकार हो उठे वास्तविक सच !
जहाँ मैं जी रही थी इतिहास में,
और , भावनाओं का समंदर लगा रहा था गोते ,
नितांत अकेले…….!
अहा……! कितनी शानदार है यह उम्मीदों और
स्वपनों का शहर …..!
जहाँ सारी उर्जा को समेटकर रखा है इस आस में ,,,
शायद अभी या फिर कभी ,,
खिलखिलाती हुई हवा के झोंकों संग ,
विचारों की जुगाली करते-करते ,,
मन का मौसम कविता बन जाये …..!!!!!!
— संगीता सिंह ‘भावना’