श्री राम वन गमन
ताटंक छंद-
वन को जाते बन सन्यासी,
राम लखन अरु माँ सीता ।
तीनों के बिन देखो कैसा,
अवध लगे रीता रीता ।
मात सुमित्रा अरु कौशल्या,
नैना नीर बहाती हैं ।
सुख सब अपने साथ ले गए,
खुशियाँ नहीं सुहाती हैं ।
दोनों भाई चलते आगे,
अरु पीछे माता सीता ।
तीनों के बिन देखो कैसा, अवध लगे रीता रीता ।
कभी नहीं जो चली धरा पर, काँटों हसती जाती है ।
चलकर पिय के कदम निशाँ पर,
खुद को धन्य बनाती है ।
चेहरे पर मुस्कान सजाकर,
पीडा सब हर लेती है ।
कदम मिलाकर चलती सँग में,
जीवन नैया खेती है।
चित्रकूट की कुटिया मैं पल
राजमहल सा है बीता।
तीनो के बिन देखो कैसा
अवध लगे रीता रीता।
— अनुपमा दीक्षित मयंक
श्री रामजी के वनगमन का मर्मस्पर्शी चित्रण करने के लिए आपका धन्यवाद । बाध्य रचना ।