चाय पर चर्चा -1
एक देहाती बाजार में नुक्कड़ पर एक चाय की दुकान पर रामू ‘कलुआ ‘और इदरीश बैठे चाय प़ी रहे थे । सामने से हरीश आता दिखा । रामू कलुआ से;” अरे कलुआ ! ये हरीश तो दिल्ली रहता था ना ? ”
कलुआ :” जी रामू काका ! दिल्ली में ही रहता था । ”
इतने में हरीश नजदीक आ जाता है ” राम राम काका !कैसे हो ? ”
रामू : “हम तो भले चंगे हैं । इ बताओ तुम कब आये दिल्ली से ?”
हरीश :” हमको तो आये तीन दिन हो गए ”
रामु :” और दिखाई आज पड़ रहे हो ? ”
हरीश :” हाँ काका ! बात ही कुछ ऐसी है ।”
रामू:” का बात है ? सब ठीक तो है ? ”
हरीश : ” अब हम का बताएं काका ? बस इ समझ लो हमारी किस्मत ही ख़राब है । ”
रामू :”अरे अब कुछ बताएगा भी की पहेलियाँ ही बुझायेगा ?”
हरीश :”काका ! आप तो जानते ही हैं हम पिछले दस साल से दिल्ली में कमाने जाते हैं । हर बार जब आते थे अपने परिवार की सभी जरूरत पूरी कर देते थे । हमारे पास बहुत तो नहीं पर अपने काम भर का पैसा रहता था अबकी पहली बार ऐसा हुआ है की हम अपने मालिक से किराया का पैसा उधIर लेकर आया हूँ ।”
कलुआ :” दो साल पर तो तू घर आया है । इतने दिन कमा के क्या किया ? दारु वारू तो नहीं प़ी गया ”
हरीश :” छि !छि ! काका कैसी बात कर रहे हो ? हमको कभी देखे हो का दारू पीते ? दारू को तो हम हराम समझता हूँ ”
कलुआ :” तो तू ही बता । दो साल कमाके क्या किया जो तुझे खाली हाथ घर आना पड़ा ?”
हरीश :” का बताएं काका ? इस बार जब हम दिल्ली गए तब बड़े खुश थे और सोच रहे थे की अब सरकार बदल गयी है । अपने मोदीजी प्रधान मंत्री बन गए हैं । अब हम जैसे दिहाड़ी मजदूरों का भला हो जायेगा ।
लेकिन कुछ भी सही ना हुआ । अबकी कुछ दिन तक तो हमको रोज काम मिला लेकिन दुसरे तीसरे महीने से ही बीच बीच में छुट्टी होने लगी । धीरे धीरे इ छुट्टी बढ़ते गयी । अब किसी महीने पांच तो किसी महीने सात आठ दिन काम मिल प़ाता था । पैसे बचते नहीं थे फिर भी हमारा गुजर बसर तो हो ही जाता था । एक दिन मालिक ने सब मजदूरों को बुलाकर कह दिया की अब तुम सब लोग अपने अपने गाँव चले जाओ । जब कोई नया काम चालू होगा हम तुम सबको बुला लूँगा ।”
कलुआ :” बड़ा बुरा हुआ । यहाँ गाँव में भी यही हाल है ।कभी सुखा तो कभी बाढ़ । खेतीहर किसान खुद ही परेशान हैं । खतों में मजदूरी मिलती नहीं । बाहर कमानेवाले भी परेशान हाल लग रहे हैं । अपने सुजीत पांडे रमेश ठाकुर और वो बिशुन के पुरवा के माताप्रसाद जैसे कई लोगों के घर का काम
अधुरा पड़ा हुआ है । अगर यही लोग काम आगे बढ़ाते तो हम जैसे गाँव में रहनेवाले मजदूरों को कुछ रोजगार मिल जाता । और तो और ऊपर से म न रे गा का भी पैसा नहीं मिल रहा है । परधानजी कह रहे हैं की अभी ऊपर से पैसा नहीं आया है । ” कहते कहते कलुआ खासा उत्तेजित हो गया था ।
अब रामू काका कहाँ चुप रहते । फट ही पड़े ” अरे कलुआ ! अब हम का बताएं ? हमरी भी हालत कुछ ऐसी ही है । सारी जिंदगी मेहनत मजदूरी करके अपने तीनों बेटों को पाला पोसा । सोचा था बड़े हो जायेंगे तो हमरा दुःख दूर हो जायेगा । लेकिन का खाक दूर हो जायेगा ? जब बेटों को कोई काम मिलेगा ‘ दो पैसा कमाएंगे तभी तो हम लोग खुश रह पाएंगे । मोदीजी को तो हम इहै सोच के वोट दिए थे की कुछ करेंगे जिससे हमरे बेटों को कुछ रोजगार मिल जायेगा । लेकिन हमको बड़ा अफ़सोस हो रहा है की हम बुडबक बन गए । सारी जिंदगी हम कभी ठगे नहीं गए थे । अबकी अपना आपको ठगा हुआ मान रहे हैं ।”
तभी वहीँ से जा रहे एक पत्रकार महोदय इनकी बहस सुनकर रुक गए ।उनका नाम था अजय अकेला ।बोले ” राम राम रामू काका ? बड़े गुस्से में लग रहे हो ।”
रामू काका बोले ” अरे नहीं बेटा । इ तो दिल की भड़ास थी जो हरीश और कलुआ की रामकहानी सुनकर जबान पर आ गयी । ”
अजय :” अच्छा ! तो आप लोग मोदीजी से नाराज हैं । लेकिन काका आपको समझना चाहिए की पिछली भ्रष्ट सरकार ने 70 साल तक देश को लुटा है । अब 70 साल के खड्ड़े को भरने के लिए थोडा समय तो लगेगा ही ।”
अब तो रामू काका बिफर ही पड़े :” खड्डा ? कैसा खड्डा ? हमको तो पहले का कहीं कौनो खड्डा नजर नहीं आता । आजादी से अब तक देश में तमाम काम हुए । सड़कें बनीं गाँव गाँव तक ‘ हाईवे बने नयी नयी किसिम किसिम की गाड़ियाँ देश में बन रही थीं । कल कारखाने लगाये गए । लोगों को रोजगार भी थोडा बहुत तो मिल ही रहा था । और बेटा अपने बाप से पूछ लेना की उन्होंने अपने दिन कैसे बिताये थे । न सर पर छत थी ना पेट में दाना । इसी पिछली सरकार के राज में तुम्हारे बाप ने तुमको पाल पोस कर बड़ा किया पढाया लिखाया ।तुमको पत्रकार बनाया और अब उसी सरकार की बुराई कर रहे हो । हमको खड्डा दिखा रहे हो । बाँध नहरें किसानों के लिए योजनायें गरीबों के लिए अनाज की योजना म न रे गा से गाँव के लोगों को रोजगार मिला । और हमारे मोदीजी म न रे गा का पैसा भी दबा कर बैठ गए । इ कलुआ का सात महीने से म न रे गा का बकाया मजदूरी नहीं मिला है । अब बताओ इसका बीबी बच्चा कैसे जिन्दा रहेगा ? ”
रामु काका आवेश में हांफने लगे थे ।
कलुआ बीच में ही टपक पड़ा :” अरे रामू काका ! संभालो अपने आपको । इ अजयवा का का लिए हो । थोडा पढ़ लिख गया है खुद को समझदार समझने लगा है और हम देहाती लोग को बेवक़ूफ़ ।
मोदीजी इन पैसावालों के लिए तो बुलेट ट्रेन चलवा रहे हैं और गरीब लोग का जुना पुराना गाड़ी सब बंद करवा रहे हैं । अब बताओ जिसके पास पैसा कम हो वो गाड़ी पर नहीं चढ़ेगा का ? ”
अब अजय से रहा नहीं गया बोला :” काका आप तो व्यर्थ ही नाराज हो रहे हैं । मोदीजी को थोडा समय तो दीजिये । बहुत बढ़िया आदमी हैं । बहुत अच्छा कर रहे हैं । देखो सभी गरीबों का मुफ्त में खाता खुलवा दिए ।”
इतना सुनना ही था की रामू काका फिर बिफर पड़े :” अरे बेटा ! रहते शहर में हो न ? गाँव की हालत तुमको का मालूम ? सौ सौ रुपये में एक फारम हम ख़रीदा हूँ । इसमें भी बुडबक बन गया । परचार के टाइम मोदीजी का भाषण हम अपने टी वि में देखा था । कहे थे काला धन हम लाकर सब लोगन के खाते में 15 से 20 लाख रूपया डलवा दूंगा । पैसा पाने के लिए खाता होना जरूरी है यही सोच कर हम अपना अपने तीनों लड़कों और किशोरवा की माँ का भी खाता खुलवा दिए । पांच फारम का पांच सौ रुपैया नगद दिया हूँ खाता खोलने के लिए और मोदीजी परचार करते हैं की मुफ्त में खाता खुलवाए हैं । बताओ कितना बड़ा झूठ है ? दो साल होने को आये और मिला कुछ भी नहीं । ”
पत्रकार भी कहाँ मानने वाला था । बोला :” अरे काका ! ये जो आपसे फॉर्म के पैसे लिए गए न यही तो भ्रष्टाचार है और मोदीजी भ्रष्टाचार ही को तो हटाने की बात करते है ………………”
(एक ढाबे पर हुयी वास्तविक बहस पर आधारित । कुछ किरदारों के नाम बदल दिए गए हैं )
क्रमशः
प्रिय राजकुमार भाई जी, आप तो ढाबे से बड़ी दूर की कौड़ी ले आए हैं. लिखने वाले को विषय कहीं से भी मिल जाता है. एक सटीक एवं सार्थक रचना के लिए शुक्रिया.
श्रद्धेय बहनजी ! आज आम जनता महंगाई और बेरोजगारी से बेसाख्ता त्रस्त है । यह वार्तालाप इसी की और इशारा मात्र है । सार्थक एवं सटीक प्रतिक्रिया के लिए आपका ह्रदय से धन्यवाद ।
राजकुमार जी ,वार्तालाप पर हुई घटना से यथार्थ बता दिया . दरअसल गरीब पहले से भी ज़िआदा मुश्किल जिंदगी जी रहा है .गरीब के लिए कोई भी सरकार आये ,कुछ फरक नहीं पड़ेगा . मोदी जी की नीयत तो बहुत कुछ करने की है लेकिन मोदी जी के नीचे वाले लोग सुधरेंगे ,तब ही कुछ हो पायेगा .
जी आदरणीय भाईजी ! मैं आपकी बीआत से पूरी तरह सहमत हूँ । मोदीजी वाकई बहुत बढ़िया कर रहे है लेकिन उनके कुछ सहयोगी ही उनकी राह के कांटे हैं । सार्थक त्वरित टिपण्णी के लिए ह्रदय से धन्यवाद ।