गीत : अब ना तारणहार आएँगे
अब ना तारणहार आएँगे, ना ही पालनहार आएँगे
माखन-मिश्री भोग लगाने, मोहन ना अब द्वार आएँगे।
शकुनि की शातिर चालों को, खुद ही तुम्हें हराना होगा
कुरुक्षेत्र के चक्रव्युहों की, तुमको काट बताना होगा
दुर्याेधन-दुश्शासनों से भी, अपने दम पर लड़ना होगा
महाभारत को छोड़ तुम्हें, इस भारत को गढ़ना होगा
कर्मयोग का पाठ पढ़ाने, केेशव न हर बार आएँगे
अब ना तारणहार आएँगे, ना ही पालनहार आएँगे।
अवतारों की आस लिए, कब तक मानवता कुम्हलाएगी?
अपनी ही संतति के हाथों, अपनी गरदन कटवाएगी?
रूप बदलते संघर्षों के, परिभाषाएँ नहीं बदलतीं!
त्रेता-द्वापर या हो कलयुग, गीता लेकिन नहीं बदलती
चक्र-सुदर्शन लेकर गिरिधर, फिर न बारंबार आएँगे।