कविता : जीवन पंछियों सा
पंछियों की तरह हो यह जीवन
ऊंची उड़ान, न हो कोई बंधन !
न सीमाओं का घेरा हो कोई
न किसी भय में रहे यह मन !
पंख फैराए उड़ते रहें यूँ सब
घर अपना हो वह नीला गगन !
चहु चहु कूके गीत गायें सब
विचित्र रंगों का हो यह तन !
काश हम भी पंछी बन जाएँ
आजाद हो मन का यह दर्पण !
जब जी आये कहीं भी चलें
बना लें कहीं भी अपना आंगन !
कोमल पंखुड़ियों को छू लें
महके गीतों से हर मधुबन !
न छल कपट हो भीतर कोई
साफ़ रहे अपना यह अंतर्मन !
— डॉ सोनिया गुप्ता
सुन्दर रचना!