गीतिका
यहीं कहीं आसपास खड़ी है
जिधर देखिये प्यास खड़ी है
खोकर कुछ एहसास खड़ी है
कितनी गमगीन प्यास खड़ी है
अपनों का तोड विश्वास खड़ी है
कुछ गैरों संग प्यास खड़ी है
दुखी है बहुत उदास खड़ी है
दूर खुशी से प्यास खड़ी है
वो जिंदा है, या लाश खड़ी है
बुझी-बुझी अब प्यास खड़ी है
— जयकृष्ण चांडक ‘जय’