हश्र से ख़ुद जो बेख़बर न हुआ, आँधियों में वो दरबदर न हुआ। मौत तक आई ज़िंदगी लेकिन, खत्म ये जीस्त का सफ़र न हुआ। मायने और हैं कईं इसके, शेर इतना भी मुख़्तसर न हुआ। मेरे आने तलक़ न रुक पाऐ, आपसे इतना भी सबर न हुआ। देवता मान जिसे पूजें हम, कोई इतना […]
Author: *जयकृष्ण चाँडक 'जय'
ग़ज़ल
इश्क़ में और आशिक़ी में हम, ग़ुम हैं अपनी ही शायरी में हम। एक तारीख़ जैसे लिख्खें हैं, ख़ुद हमारी ही डायरी में हम। धूप में जलते ग़म नहीं होता, क्यूंँ जले रोज़ चांँदनी में हम। बस अंधेरों से अपनी यारी है, अब नहीं दिखते रौशनी में हम। यूंँ तो लंबी है फिर भी सिमटे […]
ग़ज़ल
इश्क़ वाजिब ठिकाना नहीं है इसलिए दिल लगाना नहीं है टीस थोड़ी है बाकी अभी तक दर्द इतना पुराना नहीं है जिनके हाथों में हरदम नमक हो चोंट उनको दिखाना नहीं है आईने सी हमारी ये फितरत पत्थरों को बताना नहीं है छोड़ जाएं कहाँ इस जहां को कोई दूजा ज़माना नहीं है ‘जय’ सहेजो […]
ग़ज़ल
आवाज़ भी खोई हुई, सबका गला बैठा हुआ। सच को भला बतलाऐगा क्या आईना टूटा हुआ, पेड हैं चंदन के सब पर खुश्बुऐं ये क्या करें, जब हर तने पर आज भी है कोबरा लिपटा हुआ। यूँ तो है लंबी खूब फिर भी क्यूंँ यहाँ हर आदमी, कुछ ही पलों की ज़िंदगी में रह गया […]
ग़ज़ल
चाहो तो देख लो मेरा फिर इम्तहान लेकर, हर बार ही मिलूंगा मैं दीनो-ईमान लेकर। अब बिक नहीं सकेगा सामान नफ़रतों का, जाओ कहीं तुम और ये अपनी दुकान लेकर। जब आसमान में भी ज़हर बो दिया है हमने, जाएं कहाँ परिंदे ये अपनी उडान लेकर। बच्चों से अपने आज फिर नज़रें मिलाएं कैसे, घर […]
ग़ज़ल
बहुत ग़म में बहुत थोड़ी खुशी मालूम होती है, खुशी से जी लिये वो ज़िंदगी मालूम होती है। करोड़ों के बिछोने कुछ नहीं है सामने उसके, जिसे बस गोद माँ की ही भली मालूम होती है। घिरा रहकर भी पानी से जो प्यासा ही रहा हरदम, कहाँ सागर को अपनी तिश्नगी मालूम होती है। बहुत […]
गज़ल़
इतना ही चाहता हूँ मैं हर बार देखना, मन में खुशी दिल में सभी त्योहार देखना। पतझड़ भी होगे़ राह में तेरी हरेक बार, मुमकिन नहीं है बारहा बहार देखना। फुर्सत नहीं है मरने की भी जिनको आजकल, लोगों ने छोड रक्खा है इतवार देखना। धनवान को ही देखते हैं लोग क्यूँ सभी, मज़लूम की […]
ग़ज़ल
ख़ुद की बात के मारे हैं, बस हालात के मारे हैं। ये जो अश्क़ हैं आँखों में, ये मुलाकात के मारे हैं। डर लगता है दिन में भी, इतने रात के मारे हैं। उनके लिए रहमत मांँगों, जो ज़ुल्मात के मारे हैं। गर्मी, सर्दी से हैरां, और बरसात के मारे हैं। उतने […]
ग़ज़ल
चलना तो था मीलों तक, पर पहुंचे हैं, टीलों तक। गोल ज़मीं को ले आए, कोनों और नुकीलों तक। चकाचौंध चुभती है आओ, लौट चलें कंदीलों तक। खुश्बू वाले फूल बचे, रंग गुलाबी, पीलों तक। मिलना उनसे शायद हो, जीवन की तकमीलों तक। कहना था बस सार हमें, आप अड़े तफ़सीलों तक। छोड़ बिछोने मखमल […]
लो बसंत आ गया
लो बसंत आ गया,,, डालियां महक रही, कोयलें कुहुक रही, झूम-झूम गीत गा, नवयोवना चहक रही, खुशियों का मेघ ये, दिग्दिगन्त छा गया,,, लो बसंत आ गया,,, भंवरे भी झूम रहे, कलियों को चूम रहे, आज सारे देवता भी, उपवन में घूम रहे, नीरस, नीरवता का आज अंत आ गया,,, लो बसंत आ गया,,, सरसों […]