“मुक्तक”
प्रदत शीर्षक- दर्पण ,शीशा ,आईना,आरसी आदि
शीशा टूट जाता है, जरा सी चोट खाने पर
दरपन झट बता देता, उभरकर दाग आने पर
आईने की नजर भी, देखती बिंदास सूरतें
तहजीब से चलती है, खुदी मुकाम पाने पर॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
प्रदत शीर्षक- दर्पण ,शीशा ,आईना,आरसी आदि
शीशा टूट जाता है, जरा सी चोट खाने पर
दरपन झट बता देता, उभरकर दाग आने पर
आईने की नजर भी, देखती बिंदास सूरतें
तहजीब से चलती है, खुदी मुकाम पाने पर॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी